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द्वितीयोन्मेषः
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होकर वाक्य के बाश्रय वाले वक्रता के प्राणस्वरूप किसी तत्त्व का विचार करते हैं।
यहां लतापक्ष में सरलता का अर्थ है अपने समय के अनुसार उत्पन होने वाली रस की प्रचुरता तथा वाणीपक्ष में अर्थ है शृङ्गारादि रसों की व्यकता । लतापक्ष में वक्रता से तात्पर्य है बालचन्द्रमा की तरह सुन्दर संघटना से युक्त होना तथा वाणीपक्ष में अर्थ है कथन आदि की विचित्रता विच्छित्ति से लतापक्ष में अभिप्राय है पत्तों के सुन्दर ढङ्ग के विभाग से सपा बाणीपक्ष में अर्थ है कवि की कुशलता का सौन्दर्य । लतापक्ष में उज्ज्वल होने का अर्थ है पत्तों की शोभा से युक्त होना, तथा वाणीपक्ष में तात्पर्य है संघटना की सुन्दरता की भली-भांति सृष्टि । फूल में आमोद से तात्पर्य है सुगन्धि से तथा वाक्य में आमोद का अर्थ है सहृदयों को आनन्दित करने की शक्ति से। फूलों में मधु का अर्थ है पुष्प रस तथा वाक्यों में मधु का अर्थ है समस्त काव्यों की कारण सामग्री की सम्पत्ति का आविर्भाव । इस प्रकार श्रीमान् कुन्तक द्वारा विरचित वक्रोक्तिजीवित का
द्वितीय उन्मेष समाप्त हुआ।
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