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________________ वक्रोक्तिजीवितम् विच्छित्तिमालोच्य नवोत्कलिकाकलितचेतसो वाक्याश्रयं किमपि वक्रताजीवित सर्वस्वं विचारयन्त्विति तत्पर्यार्थः । श्रत्रैकत्र सरसत्वं स्वसमयसम्भविरसाढ्यत्वम्, अन्यत्र शृङ्गारादिव्यश्वकत्वम् । वक्रतैकत्र बालेन्दु सुन्दरसंस्था नयुक्तत्वम्, इतरत्रोक्त्यादिवैचित्र्यम् । विच्छित्तिरेकत्र सुविभक्तपत्रत्वम् श्रन्यत्र कविकौशल कमनीयता उज्ज्वलत्वमेकत्र पर्णच्छायायुक्तत्वम्, श्रपरत्र सन्निवेश सौन्दर्य समुदयः । श्रामोदः पुष्पेषु सौरभम्, वाक्येषु तद्विदाह्लावकारिता । मधु कुसुमेषु मकरन्दः, वाक्येषु सकलकाव्यकारणसम्पत्समुदय इति । २७२ इति श्रीमत्कुन्तकविरचिते वक्रोतिजीविते द्वितीय उन्मेषः ॥ वाणी ही है वल्ली अर्थात् वाणीरूपी लता, उसकी कोई अलौकिक विच्छित्ति अर्थात् शोभा उल्लसित होती है । कैसे - पद पल्लवों के आश्रयसे । पद ही है पल्लव अर्थात् सुबन्त एवं तिङन्त ( पद ) ही किसलय हैं, उनकी आस्पदता से अर्थात् उसके आश्रय से ( उल्लसित होती है ) । कैसी विच्छित्ति ( उल्लसित होती है ) - सुरसता की सम्पत्ति से युक्त अर्थात् रसयुक्तता के अतिरेक से सम्पन्न ( विच्छित्ति ) । और कैसी ( विच्छित्ति ) जो वक्रता से अर्थात् बाँकपन के कारण उद्भासित अर्थात् सुशोभित होती है ऐसी ( विच्छित्ति ) और कैसी - उज्ज्वल अर्थात् कान्ति के उत्कर्ष से रमणीय । उस उस प्रकार की शोभा की आलोचना अर्थात् विचार करके विदग्ध रूप षट्पदों का समूह अर्थात् सहृदय रूपी भ्रमरों का समुदाय मधु का पान करें अर्थात् पुष्प रस का आस्वादन करें । कैसे ( पुष्प रस का ) वाक्य पुष्प के आश्रय वाले ( रस का ) । पदों के समुदाय रूप वाक्य ही हैं पुष्प अर्थात् फूल एवं वे ही हैं आश्रय अर्थात् निवासस्थान जिसके ऐसे पुष्प रस का पान करें। और कैसा है ( वह पुष्प रस ) प्रचुर आमोद के कारण मनोहर स्फार । अर्थात् अत्यधिक जो यह आमोद अर्थात् पुष्प का धर्म विशेष ( सुगन्धि ) होता है उससे मनोहर चित्ताकर्षक ( रस का आस्वादन करें ) कैसे आस्वादन करें-- नवीन उत्कण्ठा से व्याकुल होकर अर्थात् अभिनव उत्कण्ठा से क्षुब्ध होकर । इसका आशय यह है कि जैसे ) भ्रमरों के समूह लता के पहले-पहल निकले हुए किसलयों की उत्पत्ति को देखकर विश्वस्त होकर उसके बाद खिले हुए सुमोकल पुष्पों के पुष्परस के पीने का आनन्द अनुभव करते हैं उसी प्रकार सहृदय पदों के आश्रय वाली किसी अलौकिक वक्रता की शोभा का विवेचन कर अभिनव उत्कण्ठा से संवलितहृदय
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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