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वक्रोक्तिजीवितम्
सम्मिलित दो अथवा बहुत से बार बार उपनिबद्ध किए गये इन वर्णों की मनोहारि निबन्धन बाली अर्थात् चित्ताकर्षक विन्यास से युक्त ( वक्रता ) होती है। तात्पर्य यह कि कोई ( रचना ) इस प्रकार ( चित्ताकर्षक विन्यास से युक्त ) हो जाती है । ( व्यवधान से रहित वर्णों की पुनः पुनः आवृत्ति होने से ) यहाँ यमक का व्यवहार नहीं प्रवृत्त हो सकता, उसकी निश्चित स्थानों (पर आवृत्ति ) के रूप में अवस्था होने से ( अर्थात् यमक में कहाँ कहाँ व्यञ्जनों की आवृत्ति होनी चाहिए इसका नियम होता है लेकिन यहाँ ( वर्णविन्यास - वक्रता में ) कोई नियम नहीं है ( अतः इसे यमक नहीं कहा जा सकता । यहाँ पर स्वरों के व्यवधान का अभाव विवक्षित नहीं है इसके अनुपपन्न होने से ( अपितु केवल व्यञ्जनों का व्यवधान अभिप्रेत है ) ।
तत्रैकस्याव्यवधानोदाहरण यथा
वामं कज्जलवद्विलोचनमुरो रोहद्विसारिस्तनम् ॥ ६ ॥
( वहाँ उन तीनों भेदों में से ) व्यवधान के अभाव में एक ( वर्ण की पुनः पुनः आवृत्ति ) का उदाहरण जैसे—
( उदाहरण संख्या १/४४ पर अद्घृत पद्य का पहला चरण- ) वामं कज्जलवद्विलोचनमुरो रोह द्विसारि स्तनम् || ९ || ( यहाँ पर 'कज्जल' में ज् की तथा 'विलोचनमुरो रोहद्' से र की अकेले वर्गों की बिना व्यवधान के एकही सिलसिले में आवृत्ति हुई है ।
द्वयोर्यथा -
ताम्बूली नद्धमुग्धक्रमुक तरुतल खस्तरे सानुगाभिः पायं पायं कलाचीकृतकदलदलं नारिकेलीफलाम्भः । सेव्यन्तां व्योमयात्राश्रमजलजयिनः सैन्यसीमन्तिनीभिर्दात् हव्यूह केली कलितकुह कुहारावकान्ता वनान्ताः ॥ १० ॥
( व्यवधान के अभाव में ) दो ( वर्णों की पुनः पुनः आवृत्ति का उदाहरण ) जैसे - ( बालरामायण ( १ / ६३ ) में रावण अपने सेनापतियों के लिए आदेश देता है कि वे )
व्योमगमन के कारण उत्पन्न स्वेद को हटा देने वाले और चातकसमूह की क्रीड़ा में उत्पन्न होने वाली मीठी चह चह के स्वर के कारण रमणीय वनप्रदेशों का साथ साथ चलने वाली सैनिक कामिनियों के साथ केले के पत्तों के बने हुए दोनों वाले नारियल के फल के रस का पानकर करके पान