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(ग) उपचारवक्रता-जहाँ पर कवियों द्वारा अत्यन्त भिन स्वभाव वाले पदार्थों के धर्म का एक दूसरे पर अत्यन्त अल्प साम्य के आधार पर उसके छोकोत्तर सौन्दर्य को प्रस्तुत करने के लिये आरोप किया जाता है वहाँ उपचारवकता होती है । जैसे अमूर्त पदार्थ का मूर्त पदार्थ के वाचक शब्द द्वारा कथन, ठोस पदार्थ का द्रव पदार्थ के वाचक शब्द द्वारा कथन, अचेतन पदार्थ का चेतन पदार्थ के प्रतिपादक शब्द द्वारा कथन उपचारवक्रता के प्रथम प्रकार को प्रस्तुत करता है। इस वक्रता प्रकार के अनन्त प्रकार सम्भा होते हैं'सोऽयमुपचारवकताप्रकारः सत्कविप्रवाहे सहस्रशः सम्भवतीति सहृदयैः स्वयमेवोत्प्रेक्षणीय'-(पृ. २२१)।
स्वभावविप्रकर्ष के प्रत्यासन्न होने पर वकता नहीं होगी-भत एव च प्रत्यासन्नान्तरेऽस्मिन्नुपचारे न बक्रताव्यवहारः, यथा गोर्वाहीक इति। (पृ. २२१)
दूसरे प्रकार की उपचारवक्रता वह होती है जिसके मूल में विद्यमान रहने पर रूपकादि अलङ्कार सरस उल्लेख वाले हो उठते हैं। कहने का श्राशय यह कि यह दूसरे प्रकार की उपचारवक्रता रूपकादि अलङ्कारों की प्राणभूता है-'तेन रूपकादेरलङ्करणकलापस्य सकलस्यैवोपचारवक्रता जीवितमित्यर्थः'पृ० २२२ ।
तथा 'आदि-' ग्रहणादप्रस्तुतप्रशंसाप्रकारम्य कस्यचिदन्यापरेशलक्षणस्योपचारवकतैव जीवितत्वेन लक्ष्यते (पृ. २२३ ) ___इन दोनों प्रकार की वक्रताओं का भेद कुन्तक ने इस ढङ्ग से प्रस्तुत किया है___'पूर्वस्मिन् स्वभावविप्रकर्षात सामान्येन मनाङ्मात्रमेव साम्यं समाश्रित्य सातिशयत्वं प्रतिपादयितुं तद्धर्ममात्राध्यारोपः प्रवर्तते, एतस्मिन् पुनरदूरविप्रकृष्टसादृश्यसमुद्भवप्रत्यासत्तिसमुचितत्वादभेदोपचारनिबन्धनं तस्वमेवाध्यारोप्यते ।' (पृ. २२२)
(ब) विशेषणवकता -जहाँ पर क्रिया रूप अथवा कारक रूप पदार्थ का सौन्दर्य उसके विशेषणों के माहात्म्य से समुल्लसित होता है वहाँ विशेषणवक्रता होती है। क्रिया अथवा कारक रूप पदार्थ के सौन्दर्य से अभिप्राय पदार्थ भाव की सुकुमारता की प्रकाशकता एवं अलङ्कार के सौन्दर्यातिशय की परिपुष्टि से है । इसके विषय में कुन्तक का कहना है कि____ 'एतदेव विशेषणवक्रत्वं नाम प्रस्तुतौचित्यानुसारि सकलसत्काव्यजीवितस्वेन लक्ष्यते, यस्मादनेनैव रसः परां परिपोषपदवीमवतार्यते'-पृ० १२६ .