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( २७ ) प्रतिपादन करने के लिए उपनिबद्ध करता है। उदाहरण मूल ग्रन्थ में देखें। इस वकता के विषय में कुन्तक का कहना है कि
'एषा च रूढिवैचित्र्यवक्रता प्रतीयमानधर्मबाहुल्याद् बहुप्रकारा भिद्यते । तच्च स्वयमेवोत्प्रेक्षणीयम् ।' (पृ० १९९)
(ख) पर्यायवकता-जहाँ पर कवि अनेक शब्दों द्वारा पदार्थ के प्रतिपादित किये जा सकने योग्य होने पर भी वर्ण्यमान पदार्थ के अत्यधिक सौन्दर्य को प्रस्तुत करने के लिए किसी विशेष ही पर्याय का प्रयोग करता है-वहाँ पर्यायस्कता होती है। पर्यायवकता को अधोलिखित पर्याय प्रस्तुत करने में समर्थ होते हैं
(१) वह पर्याय जो वाच्य पदार्थ का बहुत ही अन्तरङ्ग हो अर्थात् जिस प्रकार से विवक्षित वस्तु को प्रस्तुत करने में वह पर्याय समर्थ हो वैसा कोई अन्य पर्याय न हो। तभी वह वक्रता को प्रस्तुत करेगा ।
(२) वह पर्याय जो वर्ण्यमान पदार्थ के अतिशय को भलीभाँति लोकोत्तर ढङ्ग से पुष्ट कर सहृदयों को आह्लादित करने में समर्थ हो । वह पर्यायवक्रता को समर्पित करेगा।
(३) व पर्याय जो या तो स्वयं ही अथवा अपने विशेषणभूत दूसरे पद के द्वारा श्लिष्टता श्रादि की मनोहर छाया से वर्ण्यमान वस्तु के सौन्दर्य को परिपुष्ट करने में समर्थ हो वह पर्यायवकता को प्रस्तुत करेगा। इस तीसरे प्रकार की पर्यायवक्रता को कुन्तक ने 'शब्दशक्तिमूलानुरणनरूपव्यङ्ग्यपदध्वनि' अथवा वाक्यध्वनि' का विषय स्वीकार किया है
'एष एव च शब्दशक्तिमूलानुरगनरूपव्ययस्य पदध्वनेविषयः । बहुषु चै विधेषु सत्सु वाक्यध्वनेर्वा ।' (पृ० २०९)
( ४ ) वह पर्याय जो कि वर्ण्यमान पदार्थ के उत्कर्ष को प्रस्तुत तो करे साथ ही अपनी निजी सुकुमारता से सहृदयों को आनन्दित करने में समर्थ हो, वह चौथे प्रकार की पर्यायवक्रता को प्रस्तुत करेगा।
(५) पाँचवें प्रकार की पर्यायवक्रता को वह पर्याय प्रस्तुत करता है जिसमें वर्ण्यमान पदार्थ के किसी असम्भाव्य अभिप्राय की पात्रता निहित होती है।
(६) छठे प्रकार की पर्यायवकता को प्रस्तुत करने में वह पर्याय समर्थ होता है जो कि रूपकादि के द्वारा दूसरे सौन्दर्य को धारण करके सहृद यों को
आनन्दित करता है अथवा जो उत्प्रेक्षा आदि के दूसरे सौन्दर्य को प्रस्तुत करता हुआ सहृदयाह्लादकारी होता है ।