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________________ प्रथमोन्मेषः ९९ तथा पाञ्चाली के प्रति सहृदय आकृष्ट ही न होंगे, अतः उनका उपदेश व्यर्थ सिद्ध होगा और यदि कोई यह कहना चाहे कि वामन मादि ने इन दो रीतियों-पाञ्चाली और गोडो का ) उपदेश परिहार्यरूप (अर्थात् त्याज्यरूप) में किया है (कि कवियों को इन दो रीतियों को नहीं ग्रहण करना चाहिए तो यह कथन भी) युक्तिसंगत नहीं हो सकता, उन्हीं ( वामन आदि ) को ऐसा स्वीकार न होने से और न तो अगतिकगतिन्याय से ( अर्थात् जो चलने में सर्वथा असमर्थ है वह जो कुछ भी थोड़ा-बहुत चल ले वही पर्याप्त होता है ) यथाशक्ति दरिद्र के दान की तरह ( मध्यम अथवा अधम ) काव्य करने के योग्य होता है। ( अर्थात् काव्य-रचना उत्तम ही की जानी चाहिए बतः रीतियों का उत्तम-मध्यम और अधम रूप से किया गया विभाजन ठीक नहीं है) । इस प्रकार देश-विशेष के आश्रय का केवल रीतियों के निर्वचन अथवा संज्ञा रखने का कारण होने में ही हमारा मतभेद नहीं है, अपितु उनके स्वरूप के विषय में भी मतभेद है, जिसके कि आधार पर उन्हें उत्तम, मध्यम और अधम कोटि में विभक्त किया जाता है। दो मार्गों का भी विवेचन करने वाले ( दण्डी आदि के मतों में भी ) ये ही दोष होंगे। अतः इस प्रकार की सारहीन वस्तु की आलोचना करने से कोई लाभ नहीं है। कविस्वभावभेदनिबन्धनत्वेन काव्यप्रस्थानभेदः समञ्जसतां गाहते। सुकुमारस्वभावस्य कवेस्तथाविधैव सहजा शक्तिः समुद्भवति, शक्तिशक्तिमतोरभेदात् । तया च तथाविधसौकुमार्यरमणीयां व्युत्पत्तिमाबध्नाति | ताभ्यां च सुकुमारवर्मनाभ्यासतत्परः क्रियते । तथैव चैतस्माद् विचित्रः स्वभावो यस्य कवेस्तद्विदाहादकारिकाव्यलक्षणकरण. प्रस्तावात सौकुमार्यव्यतिरेकिणा वैचित्र्येण रमणीय एव, तस्य च काचिद्विचित्रैव तदनुरूपा शक्तिः समुजसति । तया च तथाविधवैदग्ध्य- . बन्धुरां व्युत्पत्तिमाबध्नाति । ताभ्यां च वैचित्र्यवासनाधिवासित. 'मानसो विचित्रवर्मनाभ्यासभाग भवति । एवमेतदुभयकविनिबन्धनसंवलितस्वभावस्य कवेस्तदुचितैव शवलशोभातिशयशालिनी शक्तिः समुदेति । तया च तदुभयपरिस्पन्दसुन्दरव्युत्पत्त्युपार्जनमाचरति । ततस्तच्छायाद्वितयपरिपोषपेशलाभ्यासपरवशः संपद्यते । ( इस प्रकार वामन एवं दण्डी इत्यादि के द्वारा देशभेद के आधार पर . रीतियों के विभाजन का खण्डन कर अब अपने मत की स्थापना करते हैं) कविस्वभाव के भेद को कारण स्वीकार कर किया गया काव्य-मार्ग का मेव समीचीन हो सकता है। सुकुमार स्वभाव वाले कवि की सहजशक्तिपी
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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