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वक्रोक्तिजीवितम्
इसी प्रकार (सुकुमार ही) होती है। शक्ति और शक्तिमान में अभेद होने . से। और ( वह सुकुमार स्वभाव वाला कवि अपनी सहज सुकुमार ) उस (शक्ति) के द्वारा उस प्रकार के सौकुमार्य से मनोहर व्युत्पत्ति को धारण करता है । और उस शक्ति तथा व्युत्पत्ति के द्वारा सुकुमार मार्ग से अभ्यास में तत्पर होकर (काव्य-रचना) करता है। उसी प्रकार इस सुकुमार स्वभाव वाले कवि से जिस कवि का, सहृदयों को आह्लादित करने वाले काव्य लक्षणः करने के प्रसंग से सौकुमार्य से भिन्न वैचित्र्य के कारण रमणीय ही विचित्र स्वभाव होता है । उस कवि की उसके स्वभाव के अनुरूप कोई विचित्र ही शक्ति परिस्फुरित होती है । तथा उस विचित्र शक्ति के द्वारा कवि उस प्रकार के वैदग्ध्य से मनोहर व्युत्पत्ति को धारण करता है। एवं उस विचित्र शक्ति और विचित्र व्यपत्ति के द्वारा वैचित्र्य की वासना से अधिवासित चित्तवाला कवि विचित्र मार्ग के आश्रयण से अभ्यास करने का अधिकारी होता है । इस प्रकार इन दोनों कवियों के कारणभृत (सुकुमार और विचित्र ) से युक्त स्वभाव वाले कवि की उसके अनुरूप ही विचित्र शोभा के अतिशय से सुशोभित होने वाली शक्ति उल्लसित होती है। उस शक्ति के द्वारा वह उभय-कवि दोनों सुकुमार और विचित्र के स्वभाव से सुन्दर व्युत्पत्ति का उपार्जन करता है। उसके अनन्तर उन सुकुमार और विचित्र मिश्रित शक्ति तथा व्युत्पत्ति दोनों की छाया के परिपोषण से कोमल अभ्यास में कवि तत्पर हो जाता है ।
तदेवमेते कवयः सकलकाव्यकरणकलापकाष्ठाधिरूढिरमणीयं । किमपि काव्यमारभन्ते, सुकुमारं विचित्रमुभयात्मकं च । त एव तत्प्रवर्तननिमित्तभूता मार्गा इत्युच्यन्ते ।
तो इस प्रकार ये (सुकुमार, विचित्र एवं उभयात्मक स्वभाववाले, तीनों प्रकार के ) कविजन काव्य को समस्त कारण-समुदाय की पराकाष्ठा से मनोहारी किसी सुकुमार, विचित्र या उभयात्मक काव्य की रचना करते हैं । वे ही ( सुकुमार, विचित्र एवं उभयात्मक काव्य ही ) उन ( कवियों) की ( काव्य-रचना में ) प्रवृत्ति के कारण होने से ‘मार्ग' कहे जाते हैं।
यद्यपि कविस्वभावभेदनिबन्धनत्वादनन्तभेदभिन्नत्वमनिवार्य तथापि परिसंख्यातुमशक्यत्वात् सामान्येन त्रैविध्यमेवोपपद्यते । तथा च रमणीयकाव्यपरिग्रहप्रस्तावे स्वभावसुकुमारस्तावदेको राशिः, तद्वयतिरिकस्यारमणीयस्यानुपादेयत्वात् । तद्वयतिरेकी रामणीयकविशिष्टो विचित्र इत्युच्यते । तदेतयोईयोरपि रमणीयत्वादेतदीयच्छायाद्वितयोपजीविनोऽस्य रमणीयत्वमेव न्यायोपपन्नं पर्यवस्यति । तस्मादेषां