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________________ वक्रोक्तिजीवितम् है तो उससे भिन्न काव्यशरीर के तुल्य और कौन सी वस्तु विद्यमान है जो उन (सुकुमारबुद्धि, स्वभावोक्ति को अलङ्कार मानने वाले आलंकारिकों) के लिए अलंकार रूप से अर्थात् भूषित किये जाने योग्य विद्यमान अर्थात् ( स्वभावोक्ति से ) भिन्न स्थिति को प्राप्त करती है, अर्थात् कोई भी ऐसी ( वस्तु ) नहीं ( बचती जो अलंकार्य बन सके )। ननु च पूर्वमवस्थापितम्-यद्वाक्यस्यैवाविभागस्य सालङ्कारस्य काव्यत्वमिति ( ११६) तत्किमर्थमेतदभिधीयते ? सत्यम् , किन्तु तत्रासत्यभूतोऽप्यपोद्धारबुद्धिविहितो विभागः कर्तुं शक्यते वर्णपदंन्यायेन वाक्यपदन्यायेन चेत्युक्तमेव । एतदेव प्रकारान्तरेण विकल्पयितुमाह (इस पर स्वाभावोक्ति अलंकारवादी प्रश्न करता है कि ) पहले आपने ही (११६ कारिका में यह सिद्धान्त) स्थापित किया है कि ( अलंकार और उलंकार्य के) विभाग से हीन अलंकारयुक्त वाक्य ही काव्य होता है, तो अब आप ऐसा क्यों नहीं कह रहे हैं कि ( जब स्वभावोक्ति अलंकार है तो अलंकार्य क्या होगा ? क्योंकि अलंकार और अलंकार्य में तो कोई भेद ही नहीं होता। इस बात का उत्तर देते हैं कि ) ठीक है ( कि अलंकार और अलंकार्य का विभाग नहीं होता ) किन्तु वहाँ असत्यभूत भी अलंकार्य और अलंकार का विभाग वर्णपदन्याय अथवा वाक्यपदन्याय से अपोद्धार बुद्धि द्वारा किया जा सकता है जैसा कि ( मैंने १६ कारिका की वृत्ति में ) कहा ही है। इसी बात को दूसरे ढंग से स्थापित करने के लिए कहते हैं स्वभावव्यतिरेकेण वक्तुमेव न युज्यते । वस्तु तद्रहितं यस्मानिरुपाख्यं प्रसज्यते ॥ १२ ॥ स्वभाव के बिना कोई वस्तु कही ही नहीं जा सकती, क्योंकि उस ( स्वभाब ) से रहित वस्तु अभिधान के योग्य ही नहीं होती (निरुपाख्य हो जाती है ) ॥ १२ ॥ स्वभावव्यतिरेकेण स्वपरिस्पन्दं विना निःस्वभावं वक्तुमभि. धातुमेव न युज्यते न शक्यते । वस्तु वाच्यलक्षणम् । कुतः तद्रहितं तेन स्वभावेन रहितं वर्जितं यस्मानिरुपाख्यं प्रसज्यते । उपाख्याया निष्कान्तं निरुपास्यम् । उपाख्या शब्दः, तस्यागोचरभूतमभिधाना
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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