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* तस्म-वाणी* मर-बार अरहन्त व सिद्धपद का विचार किया गया है । भाव यह है कि हे भाप जीयो ! भकिनाशी भानन्दमय ज्ञानमय व शांतिमय मोक्ष को प्राप्त करना उचित है वह कहीं बाहर नहीं है, तुम्हारे ही गर्भ में है, तुम्हारे ही पास है, उसका जन्म या प्रकाश करना चाहिये । मानव जन्म मफल करने के लिये अपने आप को पहिचानो, अपने भीतर से परमात्मा-पद प्रगट होता है। यही भावार्थ इस पात्र चौबीसी का है।
-०. शीतलप्रसाद जी "कल्याणक फूलना" इसमें तीर्थंकरों के गर्भादि पांचों कल्याणकों को निश्चयनय की अपेक्षा मे प्रात्मा के भीतर घटाकर वर्णन किया है ! गर्भ-कल्याणक उसे कहा है जब किसी भव्य जीव के हृदय में तत्वप्रीति होकर सम्यग्दर्शन का उदय होता है। इस श्रद्धा का होना ही मोक्षमार्ग का गर्भ रहना है । सामायिक नामका चारित्र होना जन्म-कल्याणक है। क्षपकश्रेणी चढ़ना दीक्षा कल्याणक है । केवलज्ञानी हो जाना ज्ञानकल्याणक है व फिर चार अघातिया कमों को भी क्षय करके सिद्ध परमात्मा हो जाना निर्वाणकल्याणक है। हम सबको चाहिए कि आत्मानुभव की सड़क पर चलकर आत्मानुभव-रूपी मोक्ष पद में पहुंच जावें; संसारी से सिद्ध हो जावें । देह के भीतर आत्मा को परमात्मा के समान जानकर उसका ध्यान या अनुभव करना चाहिये । ऐसा ही परमात्मप्रकाश में कहा है-जैसे निर्मल ज्ञानमई सिद्ध परमात्मदेव मुक्ति में विराजते हैं, वैसे ही परमब्रह्म स्वरूप परमात्मा अपने शरीर के भीतर विराजमान हैं। सिद्ध भगवान में व अपने आत्मा में गुणों की अपेक्षा भेद मत कर ।।
-७० शीतलप्रसाद जी इस तरह श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी ग्रन्थ में, श्री ममलपाहुइ जी, पात्र गर्भ गाथा, गर्भ चौबीसी और कल्याणक फूलना में बताया कि वाह्य पंचकल्याणकों के करने से प्रात्म-कल्याण नहीं होगा । प्रात्मा के भीतर जो परमात्मारूपी अरहन्त-सिद्ध विराजमान हैं उनका सच्चा गर्भ कल्याणक, जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, ज्ञान कल्याणक व निर्वाण कल्याणक करो इसमें तुम्हारा कल्याण होगा। इस कल्पना के पंच कल्याणक करना निःसार है। इसका जो भावार्थ-श्री प्र. शीतलप्रसाद जी ने लिखा व जो भी अपनी अनुमति इस विषय में दी है उसका संक्षिप्त भाव ऊपर दिया गया है। विशेष जानने के लिये ग्रन्थ देखो। उसमें मूल, अर्थ, भावार्थ विस्तार पूर्वक मिलेगा।
और विचार भी करो कि भगवान तो सिद्धों में विराजे हैं और हम पंच-कल्याणक करते समय कहें कि आज भगवान गर्भ में हैं, भाज जन्म होना है व उनकी माता बनना इत्यादि । कितने दोष की बात है, माता बनने वाली संसारी स्त्री, सप्त धातुओं से भरा उसका शरीर और शरीर में कल्पना करना कि भगवान गर्भ में हैं। यह प्रथा केवल बुन्देलखण्ड में ही ज्यादा है सब जगह इतनी ज्यादा नहीं।
"इष्ट छन गाथा " इसमें श्री वारण स्वामी ने अपने प्रत्येक पद में अपने मात्मानुभवपूर्ण