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* तारण-वाणी #
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"गिरा छन्द गाथा" इस गाथावली में श्री जिनवाणी की महिमा भले प्रकार वर्णन की गई है। वाणी सुनने से श्रोताओं के मिध्यात्व छूटते हैं, जिनवाणी के मनन से ही सर्व कायें मिटती हैं, दर्शनमोह का अन्धकार दूर होता है, सम्यग्दर्शन का प्रकाश व सम्यग्ज्ञान निर्मल होत : है, श्रात्मवल प्रकाशित होता है और वीतरागता का झलकाव होता है। श्रात्मज्ञान का ही परम मनोहर अमृतमई पाठ यह जिनवाणी सिखाती है । श्री तारण स्वामी कहते हैं - हे भव्य जीवो ! इस पवित्र जल के समान आत्मा को पवित्र करने वाली जिनवाणी-गंगा के भीतर स्नान करके आत्मा के मल को धोकर आत्मा को पवित्र कर लो । प्रमाद, लज्जा, भय को छोड़कर उत्साही होकर जिनवाणी की सेवा करो । अानन्दामृत का स्वाद चखाने वाली, सहजानन्द प्राप्त कराने. बाली है तथा भव भ्रमण मिटाकर मोक्ष-दीप में पहुँचाने वाली है
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"चक्षुदर्शन गाथा" इस गाथावली में श्री तारण स्वामी ने अन्तरंग चक्षुदर्शन ( ज्ञान चक्षु दर्शन) द्वारा जो शुद्धात्मा का अनुभव होता है अर्थात शुद्धात्मा का अनुभव होता है, उसी की महिमा व स्तुति रमणीक शब्दों में की है व बारम्बार कहा है कि यहो शुद्धात्मानुभव सर्व संसार के भयों को मेटने वाला है, यही निःशंक करने वाला है । तत्वज्ञानी महात्माओं का कर्त्तव्य है कि वे ऐसा ही उपदेश करें। जिससे यह चक्षुदर्शन भव्य जीवों के भीतर प्रकाशमान हो जावे और वे संसार - सागर के पार पहुँच जावें ।
"कमल विशेष गाथा" इसमें आत्मा को कमल की उपमा देकर श्रात्मध्यान की व आत्मानुभव की महिमा गाई है, आत्मा की स्तुति करके भाव - पूजा की है। जब श्रात्मा का साक्षात् -- कार होता है तब ही सम्यग्दर्शन का प्रकाश होता है । - ब्र० शीतलप्रसाद जी
" पात्र गर्भ गाथा" इसमें पात्र गर्भ आत्मा को कहा है जिसके गर्भ में सर्व शुद्ध आत्मीक गुण विद्यमान हैं। जब श्री परमात्मा-पद प्रगट हो जाता है और केवलज्ञान, दर्शन आदि शुद्ध गुणों का प्रकाश हो जाता है तब उस गर्भ में से परमात्म- पद का जन्म हुआ ऐसा कहा जात है । इसी भाव को इस गाथावली में बताया गया है। उस गर्भ से जिनपद का जन्म तब ही होता है जब कोई मुनि चार आराधनाओं को आराधन करके क्षपकश्रेणी चढ़कर चार घातिया कर्मों का क्षय करता है | तात्पय यह कि इसी तरह अन्य भव्य जीवों को अपने ही आत्मा को पात्र गर्भ समझना चाहिये और गर्भ के जन्म के लिये चार आराधनाओं द्वारा शुद्धात्मा का अनुभव करना चाहिये । गृही हो या साधु, श्रात्म- ध्यान से ही कल्याण होगा ।
- प्र० शीतलप्रसाद जी
"गर्भ चौबीसी गाथा" इस गर्भ चौबीसी में परमात्मा - पद अरहन्त या सिद्धरूप जो भव्य ata के भीतर गर्भ रूप से रहता है उसी की महिमा अनेक प्रकार के शब्दों से गाई गई है।