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* तारण-वाणी
की प्राप्ति हो जायगी । और जब सम्यक्त प्राप्त हो जायगा वब स्वतः स्वभाव पुण्य-फल से अरुचि हो जायगी, पुण्य से नहीं । साथ ही साथ प्रात्म भाराधना बढ़ती चली जायगी और वह आत्मआराधना हमें मोक्ष प्राप्त करा देगी।
तात्पर्य यह है कि हमें पुण्य-कर्म नहीं छोड़ना हैं, पुण्य-फल की आकांक्षा को छोड़ना है और भगवान की पूजा नहीं छोड़नो है भगवान का यथार्थ स्वरूप समझना है और समझना है पूजा का सच्चा विधिविधान कि सच्ची पूजा किसे कहते हैं और वह किस तरह किसकी की जानी चाहिये । यही भाव श्री कानजी स्वामी का है कि जो वे अपने प्रवचन में बारबार कहते हैं। हम उसे तो ठीक-ठीक समझने का प्रयत्न नहीं करते हैं और मनमाना अर्थ समझकर उच्छृखल बन जाते हैं।
इस जगत में जीव और अजीव केवल दो ही द्रव्य हैं और उनके परिणमन से प्रास्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष यह मिलकर सात तत्व कहे गये हैं। और इन्हीं में पुण्य-पाप ये दो मिलकर नौ तत्व या पदार्थ कहे जाते हैं। ___जैसे स्फटिक मणि यद्यपि स्वभाव से निर्मल है तथापि रंगीन डांकपत्र के सामीप्य से अपनी योग्यता के कारण से पर्यायांतर परिणति ग्रहण करती है। यद्यपि स्फटिकमणि पर्याय में उपाधि का ग्रहण करती है तो भी निश्चय से अपना जो निर्मल स्वभाव है उसे वह नहीं छोड़ती। ठीक ऐसा हो स्वभाव जीव का है कि जीव शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से तो सहज शुद्ध चिदानन्द एक रूप है, परंतु स्वयं अनादिकर्म बंधरूप पर्याय के वशीभूत होने से वह रागादि परद्रव्य उपाधि पर्याय को ग्रहण करता है। यद्यपि जीव पर्याय में पर पर्याय रूप से परिणमता है तथापि निश्चयनय से अपने शुद्ध स्वरूप को नहीं छोड़ता।
चिदानन्द मानी प्रात्मा आनन्दरूप है । इस आनन्द रूप का अनुभव करते रहना, आनन्द रूप में रहना ही आत्म आराधना करना है, आत्मानुभव करना है। और उस पात्मानन्द को परमानन्द परिणति की ओर अग्रसर करते रहना ही भात्म-पूजा करना है, भगवान की पूजा है। इसी तरह दूसरे मनुष्य और प्राणीमात्र आत्मानन्द को प्राप्त हों ऐसी हमारी प्रत्येक क्रियाएं दूसरों की आत्म-पूजा करना है, भगवान की पूजा करना है। इस पूजा में ही अहिंसा परमो धर्मः समाया है । इस तत्व को समझे विना भगवान की पूजा, पूना नहीं और मूर्तिपूजा से तो भगवान की पूजा का कोई सम्बन्ध ही नहीं।
सात तत्वों में जीव तत्व की निर्मलता एवं सिद्धि के लिये अजीव, आश्रव, बंध ये तीन तत्व तो हेय हैं और संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ये तीन तत्व उपादेय हैं।
शेय-मात्मपदार्थ, हेय उपरोक्त तीन तत्व त्यागने योग्य और तीन तत्व उपादेय पर्थात् ग्रहण