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प्रातः कालीन
* जिनवाणी- प्रार्थना *
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जय करुणामय जिनवाणी ! जय जय मां ! मंगलपाणी !! स्याद्वाद नय के प्राङ्गण में बहे तुम्हारी धारा, परम अहिंसा मार्ग तुम्हारा निर्मल, प्यारा, प्यारा ! माँ ! तुम इस युग की वाणी सब गुणखानी !!
अशरण शरणा, प्रणतपालिका माता नाम तुम्हारा । कोटि-कोटि पतितों के दल को तुमने पार उतारा ॥ क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी ? तिर्यग् प्राणी !!
मोह -मान- मिथ्यात्व मेरु को तुमने भस्म बनाया । जिसने तुम्हें नयन भर देखा, जीवन का फल पाया ॥ तुम मुक्ति - नगर की रानी ! शिवा भवानी !!
कुन्दकुन्द, योगीन्दु देव से तुमने सुत उपजाये । तारणस्वामी, उमास्वामि से तुमने सूर्य जगाये ॥ माँ ! कौन तुम्हारी शानी ? तुम लाशानी !!
"यह भव-पारावार कठिन है इसका दूर किनारा ! इसके तरने को समर्थ है, आत्म - जहाज हमारा ।" यह माँ की सुन्दर वाणी ! शिवसुख दानी !!
माता ! ये पद - पद्म तुम्हारे हमसे कभी न छूटें । छूटें ही तो तब, जब 'चंचल' जन्म-मरण से छूटें | माँ ! तुम चन्दन हम पानी ! हृदय समानों !!
— 'चंचल'
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