________________ देवभद्रसरि-६ विरचित वीतरागस्तवः / // 10 // 4-% कर्मसंहारकाराभ्यामतो वीर्यातिरेकतः / शास्त्र-सामर्थ्ययोगाभ्यां योगिनां नाथ ! योजय // 40 // प्लवङ्गलीलवच्चेतःपारिप्लवमिदं मम / तस्य स्थैर्यकृते नाथ! योगदण्डं प्रसादय // 11 // यदर्थ मृग्यते योगो योगिभिस्तववेदिभिः / तदयोगं पदं दद्याः पूर्यन्ता मे मनोरथाः // 42 / / त्वदाज्ञा नाथ ! मे प्राणास्त्वदाज्ञा नाथ ! मे तपः / त्वदाज्ञा नाथ ! [मे यो]गस्त्वदाज्ञा परमं पदम् // 43 // स्वदाज्ञाशरणा[:] सिद्धा नेके सिद्ध्यन्ति चापरे / सेत्स्यन्त्यनन्तास्तत् स्वामिनाज्ञा मौलिमणिर्मम // 44 // द्रतः सम्पदस्तावदासता याः किलापदः। मुक्तावपि [न] मे वान्छा यत्र न त्वमुपास्यसे // 45 // स्वच्छासनानुरागेण रञ्जिताः सप्त धातवः / यथा मम तथा मोक्षलक्ष्मीमेव्यनुरज्यताम् तवानुभावतो भूयाद् भक्तिर्जिन ! भवे भवे / देवे त्वयि गुरौ जने स्वदुपजे च शासने // 47 // देव / स्वदर्शनादेव दुष्कृतं क्षयमाप्नुयात् / सुकृतं वर्धतां सर्वमनुमोदनया मम // 48 // सुख दुःखे दिवा रात्रौ जन्मन्यत्र परत्र च / भूयासुः शरणं स्वामिन् ! पश्चापि परमेष्ठिन: // 49 // श्रीवीतरागस्तवनादमुष्मात् , पुण्यं यदाप्तं भवतात् ततो मे / श्रीदेवभट्टैकमहानिधाने, स्वच्छासने तीव्रतरोऽनुरागः // 50 // // इति श्रीवीतरागस्तवः सम्पूर्णः / / KASARAMARAGAOCACASACARSHA% आचार्यश्रीदेवभद्रसूरिविरचितः श्रीवीतरागस्तवः। // 2 // // 4 // // 5 // // 8 // // 10 //