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पच्चक्खाणं ।
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देवभद्दसरिविरइओ कहारयणकोसो। विसेसगुजाहिगारो। ॥३४॥
प्रत्याख्याने भानुदत्तकथानकम् ४९।
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प्रत्याख्यान स्य स्वरूपम्
सबो धम्मो नाणे पच्चक्खाणे य वनिओ सम्म । नाणप्पहाणमहुणा ता पच्चक्खाणमक्खेमि पावाणं जोगाणं तिविहं तिविहाइमेयओ चागो । भन्नइ पच्चक्खाणं संवरणं तस्स एगहूं
॥ २ ॥ तं मूलुत्तरगुणगोयरतणेणं दुहा समक्खाय । मूलगुणा पाणिवहाइचागरूवा उ निदिट्ठा
॥ ३ ॥ उत्तरगुणा उ आहारचायपमुहा इमेसु पगयमिमं । पञ्चक्खाणं तं पुण दसहा सुत्चे जो भणियं
अणागय १ मइकंतं २ कोडीसहियं ३ नियट्टियं ४ चेव सागार५ मणागारंपरिमाणकडं ७निरवसेसं ८॥५।। संकेय ९ चेव अद्धाए १० पच्चखाणं तु दसविहं [एय]। एयाणऽत्थविभागं सीसंतं सुणह लेसेण पोसवणाइतवं गिलाण-संघाइकजसब्भावे । पोसवणाईणं पुर्व पच्छा व जो कुणइ
॥ ७॥ तकाले अचयंतो पच्चक्खाणं हि तस्स कितिति । पढम अणागयं नाम बीयगं पुण अइकंत
॥ ८॥ पट्ठवणओ य दिवसो पच्चक्खाणस्स निढवणओ य । जम्मि समिति दोनि वि तं जाणसु कोडिसहियं तु ॥९॥ अमुगो अमुगम्मि दिणे तवोविसेसो अवस्स कायद्यो । जाजीवं संवरणं एयं तु नियट्टियं नाम नवरं चउदसपुची जिणकप्पी पढमसंघयणिणो वा । थेरा वि कुणंति इमं सेसाणं नेह अहिगारो ॥११॥ १-२ याग:-विरतिः ॥३ नियन्त्रितम् ॥ ४ एतेषामर्थविभाग शिष्यमाणम् ॥ ५ अशक्नुवन् ॥
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॥३४॥
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महयरयाई जम्मि आगारा तं तु होइ सागारं । इयरं तु अणागारं पचक्खाणं पयंपंति
॥ १२ ॥ दत्तीहिं व कवलेहिं व घरेहिं भिक्खाई अहव दवेहिं । जो भत्तपरिचायं करेइ परिमाणकडमेयं ॥ १३ ॥ सर्व असणं सर्वच पाणियं सबखज-पेञ्ज विहिं । वोसिरह सवभावेण भणियमेयं निरवसेसं
॥ १४ ॥ अंगुढ-मुट्ठि-गट्ठी-घर-से-उस्सास-थिवुग-जोइक्खे । पच्चक्खाणं संकेयमेयमुकित्तियं बहुहा
अद्धापच्चक्खाणं मुहुत्त-पहराइकालनिष्फनं । सामन्नेणं तु इमं दसहा नवकारमाइ जहा नवकार १पोरिसीए २पुरिमड्ढे ३ गासणे ४ गठाणे५य । आयंबिल ६ऽभत्त₹७चरिमे८य अभिग्गहे ९विगई १०॥१७॥
आगारा य इमेसु जाहासंखेण दोन्नि छ चेव । सत्तऽदु सत्त अट्ठ य पंच य चत्तारि चरमे य ॥१८॥ चत्तारि पंच वाऽभिग्गहे य नव अट्ठ वा वि निविगए । अप्पाउरणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥१९॥ नवणीओगाहिमए अद्दवदहि-पिसिय-घय-गुले चेव । नव गारा [ए]तेसिं सेसदवाणं च अद्वेव
॥२०॥ सयपालणियं च इमं कयसंवरणी चि देइ अन्नेर्सि । किंतु न तिपिहं तिविहेण वजए जीवधाय व ॥२१ ।।
इह छविहा य सुद्धी नेया सद्दहण जाणणा विणए । अणुभासणाऽणुपालण भावविसोही य जत्तेण ॥ २२ ॥ जं जत्थ जया काले पच्चक्खाणं जिणेहिं निद्दिढें । तं तत्थ सद्दईतस्स होइ सद्दहणसुद्धं ति
॥ २३ ॥ मूलुत्तरगुणगोय[रप]रं तु जं जत्थ जुञ्जए कप्पे । तं तत्थ जाणमाणस्स निच्छियं जाणणासुद्धं
॥२४॥ १ अनुप-मुष्टि-प्रन्धि-गृह-स्वेद-उच्वास-स्तिबुक-ज्योत्याख्यम् ॥ २ "बनीओ प्रती ॥ ३ स्वयंपाकनीयम् ।।
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