SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवभद्दसूरिविरइओ | कहारयण-15 कोसो॥ सामनगुणाहिगारो। ॥१०२॥ RAKARNAKACAN एयस्स रक्खणम्मि सक्वं चिय रक्खिओ भवे धम्मो । न य एत्तो वि हु परमं अन्नं वनंति गुणठाणं ॥६॥ जिणपवयणबुट्टिकर पभावगं नाण-दसण-गुणाणं । जिणदवं रक्खंतो परित्तसंसारिओ होइ ॥ ७॥ जिणपवयणवुतिकरं पभावगं नाण-दसण-गुणाणं । जिणदत्वं पंड्डतो तित्थयरत्तं लहइ जीवो चोएइ चेइयाणं इचाइगिराए जइ जईणं पि । वुत्तं रक्खणमेयस्स ता गिहत्थाण किं वच्चं? ॥९॥ तथाहि चोएइ चेइयाणं गाम-सुवाई गाव-रुप्पाई। लग्गंतस्स हु मुणिणो तिकरणसुद्धी कहं नु भवे? ॥ १० ॥ भनइ एत्थ विभासा जो एयाई सयं विमग्गेजा । न हु तस्स हो सुद्धी अह कोई हरेज एयाई ॥ ११ ॥ सर्वत्थामेण तहिं संघेणं होइ लग्गियई तु । सचरित्त-ऽचरित्तीणं एवं संवेसि कर्ज तु ॥ १२ ॥ एयं चिय साहारणदवं पि करेज तदवरं नवरं । चेइय-चिंबच्चण-संघपोग्गयाईणि (?) से विसओ ॥ १३ ॥ किर चेइयस्स दवं कले उवजुआई जिणस्सेव । साहारणदवं पुण उवजुअइ सवठाणेसु ॥ १४ ॥ ता इममवि काय पड्डेयवं च रक्खियत्वं च । अन्नत्तो सह लामे बयणीयं एयमवि नेव भंगे देसाईणं कुतिस्थिएहिं समं च कलहम्मि । दसणकजे य परेऽणुनाओ एयदववओ ॥१६॥ किं बहुणा ?चेइयदई साहारणं च जो दुहइ मोहियमईओ। सो जिणमयं पि न मुणइ अहवा बद्धाउओ पुट्विं ॥१७॥ इय सबपयारेहिं अरक्खणे रक्खणे य एयरस । जे दोस-गुणा तेसु दिढतो भायरो दोन्नि ॥१८॥ तहाहि१ वट्टतो प्रती ।। २ वाच्यम् ॥ ३"ज सिद्धी प्रती ।। ४ सर्वस्थाम्ना ॥ ५" चिक" प्रती ॥'बहेय" प्रती ॥ ७व्ययनीयम् ॥ ८ बुह्यति ॥ देवद्रब्याधिकारे भ्रातद्वयकथान(कम् १४॥ 64544CACCk साधारण द्रव्यम् C HAKREWASAKARTAR%2464-%ASAXERCE जिणचिंचपूयणाईसु जस्स भावो जहिं जहिं रमइ । सो तस्स मोक्खहेऊ ता न खमो एगपक्खगहो ॥ २१ ॥ अक्खय-वत्थाईणि य परउवओगि त्ति नेव जुत्ताई। णन्तमवहेउभावा एयं पि विगप्पणामेत्तं ॥ २२ ॥ जइ भावदोसबिरहा पूयाकारिस्स एस दढदंडो। ता साहुभूरिदाणे अजिन्न मरणे य रिसिपाओ ॥ २३ ॥ जिणभवणाईणं पि हु कारवणे जं भगाण (?) हेउत्ते । भूरिभवदोसभावा तदकारवणं परं इ8 ॥ २४ ॥ मा सबहा वि कुग्गहसिप्पिविकप्पणविमोहिया भद्दा ! । अचंतबहुस्सुयसंसिए वि भावे विसंकेह ॥ २५ ॥ न हि पुत्वमुणीसरदिङमग्गमवहाय सैमइघडिओ वि । अन्नो विजइ पंथो सिद्धिपयट्टाण सचाण ॥ २६ ॥ एवं सिक्खविओ विहु अज्जुणतो अज्जुणो व जडपयई । अवमनियमुणिवयणो न पत्रोतह वि नियदोसं ॥ २७॥ तुमए वि तस्स पंथो सत्थाह ! समत्थिओ हि सुकरो ति । सच्छंदपयाराओ सुहे ण विलसंति बुद्धीओ ॥ २८ ॥ एवं च दुवे वि तुब्मे जिणेपूयाविसयकुग्गहनिग्गहियविसुद्धपरिणामा, परेसिं पि समुप्पाइयमइविब्भमा, जईगुरुपूयाविच्छेयावञ्जियसुकयंतरायदोसेण घत्था य मरिऊण, असुभट्ठाणेसु उप्पत्ति-मरणदुक्खाई अणुभविऊण चिरकालं, तहाविहपुवजम्मसुकयवसेण संपह अमच्च-रायत्तणेण उपवना। तस्स पुबदुकयसेसस्स अजिनस्स एसो अडइनिवडणाइरूवो दुबिलासयविससा । ता भो महाणुभाव ! पुबदुश्चरियं सरमाणा तह कह पि सुचरिएसु पयह न जहा एवंविहविडंबणाभायणं हवह त्ति ॥ छ । । १ नमम प्रती ॥ २ स्वमतिघटितः ।। ३ भर्जुन इव ॥ ४ स्वच्छन्दप्रचाराः शुमे न विलसन्ति बुद्धयः ॥ ५ जिनपूजाविषयकमहविनिगृहीतविशुद्धपरिणामी ॥ ६ जगनुरुपूजाविच्छेदावर्जितसुकतान्तरायदोषेण प्रस्ती ।। ७ अटवीनिपतनाविरूपः ।। ASSAGARALSACCOCCAKRAM.
SR No.009701
Book TitleKaharayana Koso
Original Sutra AuthorDevbhadracharya
AuthorPunyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1944
Total Pages393
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy