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श्री जम्बूस्वामी चरित्र से लेना - हे राजन् ! सर्वथा अनुचित है। यदि तुम अपनी सेना के बल से इस अनुचित कार्य में सफल हो जाओगे - ऐसा अभिमान रखते हो तो यह तुम्हारा भ्रम है, तुम बहुत बड़े अंधकार में हो। योग्य राजा मिथ्या अभिमान से सफल नहीं होते, वे तो अपनी न्यायनीति से सफल होते हैं।
जम्बूकुमार का धर्म-नीति पूर्ण संबोधन _हे विद्याधर! इस संसार-वन में अनंत जीव अपने स्वरूप को भूलकर, सच्चे देव-शास्त्र-गुरु की विराधना कर, पर में कर्तृत्व बुद्धि के कारण अनंत कर्म का संचय करते हैं और उसके फल में अपरंपार दु:खों को भोगते हुए भ्रमण करते हैं। कहा भी है - अलंघ्यशक्तिर्भविव्यतेयं
हेतुईयाविष्कृतकार्यलिंगाः। अनीश्वरो जन्तुरहं क्रियातः संहत्य कार्येष्विति साध्ववादिः ॥३३॥ विभेति मृत्योर्न ततोऽस्ति मोक्षो, नित्यं शिवं वांछति नास्य लाभः। तथापि बालो भयकामवश्यो, वृथा स्वयं तप्यत इत्यवादीः॥ ३४॥
भावार्थ - भवितव्यता की शक्ति को कोई नहीं लाँघ सकता है। कार्य दो कारणों से होता है - पुरुषार्थ से और पूर्व पुण्योदय से। हे नाथ! आपने ठीक ही बताया है कि कोई इस बात का अहंकार करे कि मैं यह कार्य करके ही रहूँगा तो वह इस पुण्योदय की सहायता के बिना नहीं कर सकता। कोई भी प्राणी सरना नहीं चाहता, अपने मरण से डरता ही रहता है, फिर भी मरण से कोई बचता नहीं। प्रत्येक प्राणी नित्य भला चाहता है, परन्तु सबका भला नहीं होता। जब पुण्योदय से काम होता है और पापोदय से विनाश होता है, तब अज्ञानी वृथा ही मरण से डरता है और इच्छाओं में जलता है - हे जिनेन्द्र! ऐसा आपका यथार्थ कथन है।
कोई अपने को कितना ही बलवान योद्धा मान ले, परन्तु उसे उससे भी बलवान मिलता ही है। 'सेर को सवा सेर' मिलते ही हैं - ऐसी ही संसार की स्थिति है। कोई अहंकार से अपने को कुछ भी मानता रहे, परन्तु इस जगत में सबको भक्षण करने वाला यमराज सदा तैयार रहता है।