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श्री जम्बूस्वामी चरित्र
अचिंत्य बल के धनी और वज्रशरीरधारी कुमार के लिए तो उस हाथी को शांत करना चुटकियों का खेल था। उन्होंने उसे निर्मद कर दिया। वे उसके दाँतों पर पैर रखकर शीघ्रता से ऊपर चढ़कर बैठ गये। हाथी का मद चूर-चूर हो गया। इसके बाद वे उसे स्नेहपूर्ण वचन कहकर उसे इच्छानुसार इधर-उधर घुमाने लगे। तब सभी महापुरुषों ने जम्बूकुमार का सत्कार करते हुए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की - "आप महान पुण्यवान हो, बलवान हो, गुणवान हो, आप महान पुरुषों द्वारा पूज्य हो, आपकी गुण-गाथा अकथनीय है।"
नीति-निपुण राजा श्रेणिक भी जम्बूकुमार का बल देख आश्चर्यचकित हो गये। उन्होंने जम्बूकुमार को अपने पास बुलाकर अपने ही साथ सिंहासन पर बिठाया, वे प्रेम से दुलार कर, मस्तक पर हाथ फेरते हुए उसकी प्रसन्नता से प्रशंसा करने लगे, उन्होंने प्रमुदित चित्त से अनेक प्रकार के रत्नादि द्रव्य कुमार को भेंट किये। धन्य है उस रत्नगर्भा माता एवं पिता को, जिसने ऐसे संकटहरण, गुणनिधान महापुरुष को जन्म दिया। जिस हाथी को कुमार ने वश किया, उसी हाथी के मस्तक पर कुमार को बिठाया गया और दुंदुभि बाजों की ध्वनि के साथ व सैकड़ों राजाओं के समूह के साथ कुमार को नगर में प्रवेश कराया गया।
माता-पिता भी बड़े आदर के साथ पुत्र को घर लाए। उन्होंने सुन्दर सिंहासन पर बिठाकर उसका सम्मान किया। वे उसका हाथ से स्पर्श कर विह्वलतापूर्वक उससे पूछते हैं - "हे पुत्र! तेरा इतना कोमल शरीर है, हे बेटा! तूने मेरु पर्वत समान हस्ती को कैसे वश में किया? तुझे कुछ चोट तो नहीं आई ? तुम कुशल तो हो न?" इत्यादि। ____ जम्बूकुमार बोले - “नहीं माते, नहीं! मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं पूर्ण कुशल हूँ।" ____ मित्रमंडली भी इतना बलवान और धैर्यवान मित्र पाकर आनंदित हो उसके पुण्य-प्रताप को सराहने लगी।