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जैनधर्म की कहानियाँ जो प्रायः युद्ध में जाया करता था, वह समझा कि युद्धस्थल में योद्धाओं का भयंकर कोलाहल हो रहा है और इस भ्रम से वह भयभीत होकर सांकल तोड़कर वन में घूमने लगा।
वह कृष्ण वर्णवाला नीलपर्वत के समान विशालकाय हाथी अपने बड़े-बड़े कर्णों को हिलाता हुआ इधर-उधर डोल रहा है। वह कभी बड़े-बड़े दांतों से पृथ्वी को खोदता है तो कभी सँढ़ में सरोवर का पानी भर-भरकर फेंकता है। वह वन आम्र, चंपक, नारंगी, ताल, तमाल, किसमिस, खजूर, अनार आदि फल-फूलों से भरे वृक्षों से सुशोभित था, जिस पर मोर-मोरनी एवं कोयलों के मधुर शब्द गुंजायमान हो रहे हैं - ऐसे मनोहर वन के वृक्षों को उस हाथी ने जड़-मूल से उखाड़कर फेंकता हुआ शोभा-विहीन कर दिया। जिस वन की प्रशंसा देवगण भी करते हैं, उसे आज इस हाथी ने नष्ट-भ्रष्ट कर डाला।
अपने-अपने घर की ओर लौटने वाले सभी नगरवासी, क्रोधावेश में भरे हुए हाथी को स्वच्छंद विचरण करते हुए देख आश्चर्य में पड़ गये। वे दूर से उस हाथी को देखते हैं कि इसके कपोलों से मद झर रहा है, जिससे उस पर भ्रमर गुंजार कर रहे हैं। वह युद्धस्थल के हस्तियों के समान चिंघाड़ रहा है, उसकी भयंकर चिंघाड़ सुन सभी भयभीत हो गये।
सभी लोग भय से आक्रांत हो इधर-उधर भागने लगे। बड़े-बड़े योद्धागण भी उसे बाँधने के लिए उसके सामने जाने का साहस नहीं कर पा रहे थे, इसलिए वे उद्यमरहित हो उदास-चित्त खड़े थे। श्रेणिक राजा भी उसे देख रहे थे, मगर उसे पकड़ने का साहस नहीं कर पा रहे थे, वहीं बलवान जम्बूकुमार भी खड़े थे। निर्भयी कुमार ने उस मदोन्मत्त हाथी को तोते के समान शक्तिहीन समझकर भयरहित हो धैर्य से उसकी पूंछ पकड़ ली।
जिसे वज्र भी क्षति नहीं पहुंचा सकता - ऐसे वज्रशरीरी जम्बूकुमार का वह कीट समान हस्ती क्या बिगाड़ सकता था? उसने कुमार को परास्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये, मगर गजराज के सभी प्रयत्न विफल चले गये। अन्ततः शत्रु को अजेय जानकर गजराज भी शांत हो गया।