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श्री जम्बूस्वामी चरित्र
चारों ही श्रेष्ठी, अर्हदास से स्वीकृति पा बड़े ही हर्ष के साथ अपने-अपने घर को गये। चारों ही कन्यायें एवं उनकी माताएँ समाचार सुनकर अति आनंदित हुईं। सभी ने मंगलमयी जिनेन्द्रदेव का स्मरण कर खूब जोर-शोर से विवाह-उत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ कर दी। । कुछ समय बाद पुन: चारों श्रेष्ठी श्री अर्हदास श्रेष्ठी से मिले
और उन्होंने विवाह का शुभ-मुहूर्त सुधवाया। अक्षय-तृतीया के शुभ दिन विवाह होना निश्चित हुआ। उन्होंने मंगल मुहूर्त के समाचार घर में आकर कहे। सभी कन्याओं के लिए उनके माता-पिता ने सुवर्ण-रत्न आदि के आभूषण बनवाये और भी आवश्यक सामग्री का प्रबंध करने में सक्रिय हो गये। उसी दिन से अर्हद्दास आदि पाँचों श्रेष्ठियों के घर में मंगलगान होने लगे। सभी श्रेष्ठियों ने शुभ-विवाह की निमंत्रण-पत्रिका अपने-अपने बन्धुवर्ग को भेजी।
राजा के हाथी का छूटना एवं उसे वश करना। सभी ऋतुओं में शिरोमणि वसन्तराज का आगमन हुआ। वृक्षों से पुराने पत्तों ने बिदाई ली और नवीन पत्तों ने आकर वृक्षमंडल को नीलकमल के समान सुशोभित कर दिया। नीलकमलसम वृक्षमंडल पर तारों के समान चमकते हुए पुष्पसमूह वसंतराज के यश को विस्तारित कर रहे हैं। कोयलें भी अपने मधुर स्वर से वसन्तराज का यशगान कर रही हैं। पुष्पों की सौरभ वन में ऐसी महक रही है, मानो कामदेव ने मोहित करने को जाल ही बिछा दिया हो। पुष्प-पराग के मतवाले भ्रमरों की पंक्तियाँ वन में घूम रही हैं, शीतल-शीतल मंद-मंद सुगंधित पवन चल रही है। खिले हुए फूलों से युक्त अशोक, चंपक, किंशुक आदि वृक्षों से वन शोभ रहा है।
ऐसी वसन्तऋतु में जम्बूकुमार अपने मित्रगणों के साथ वन में क्रीड़ा करने को गये हैं। उसी समय राजा एवं नगरवासी अपनी-अपनी पत्नियों सहित वन-क्यारियों में मनवांछित क्रीड़ा कर रहे हैं। सरोवर में स्नान करके सभी लोग हाथी, घोड़े आदि अपनी-अपनी सवारी पर बैठकर अपने-अपने डेरों की ओर परस्पर बातचीत करते हुए लौट रहे हैं। चारों तरफ बाजों की गंभीर ध्वनियाँ हो रही हैं।
इस तरह के कोलाहल को सुन श्रेणिक राजा का एक हाथी,