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श्री जम्बूस्वामी चरित्र दोनों पार्श्वभागों में एक-एक नाट्यशाला है। ज्योतिषी देव इन द्वारों की रक्षा करते हैं। धूलिसाल कोट के भीतर चैत्य-प्रासाद-भूमियाँ हैं। जहाँ पाँच-पाँच प्रासादों के अन्तराल से एक-एक चैत्यालय स्थित है। इस भूमि के भीतर पूर्वोक्त चार वीथियों के पार्श्वभाग में नृत्यशालाएँ हैं, जिनमें ३२ रंगभूमियाँ हैं। प्रत्येक रंगभूमि में ३२ भवनवासी कन्यायें नृत्य करती हैं।
प्रथम (चैत्य-प्रासाद) भूमि के बहुमध्य भाग में चारों वीथियों के बीचोंबीच गोल 'मानस्तम्भ भूमि है। इस प्रथम चैत्य-प्रासाद-भूमि से आगे प्रथम वेदी है, जिसका सम्पूर्ण कथन धूलिसाल कोट के समान जानना। इस वेदी से आगे दूसरी १ ख्यतिका भूमि है, जिसमें जल से पूर्ण खातिकाएँ हैं। इससे आगे पूर्व वेदि सदृश ही १द्वितीय वेदी है। इसके आगे तीसरी १२लताभूमि है, जो अनेक क्रीड़ा-पर्वतों व वापिकाओं आदि से शोभित है।
इसके आगे दूसरा कोट (साल) है, जिसका वर्णन धूलिसालवत् है, परन्तु यह यक्षदेवों से रक्षित है। इसके आगे चौथी "उपवन नाम की चौथी भूमि है, जो अनेक प्रकार के वनों, वापिकाओं चैत्य वक्षों से शोभित है। सभी वनों के आश्रित सभी वीथियों के दोनों पार्श्वभागों में दो, दो (कुल १६) "नृत्यशालाएँ होती हैं। आदि वाली (१ से लेकर ८ तक की) आठ नाट्यशालाओं में भवनवासी देव कन्याएँ और उससे आगे (९ से लेकर १६ तक) की आठ नाटयशालाओं में कल्पवासी देवकन्याएँ नृत्य करती हैं। इसके आगे पूर्व सदृश ही तीसरी वेदी है जो यक्षदेवों से रक्षित है। इसके आगे पाँचवीं १७ध्वजभूमि है, जिसकी प्रत्येक दिशा में सिंह, गज आदि दस चिह्नों से चिह्नित ध्वजाएँ हैं। प्रत्येक चिह्न वाली १०८ ध्वजाएँ हैं और प्रत्येक ध्वजा अन्य १०८ क्षुद्र ध्वजाओं से युक्त है। कुल ध्वजाएँ = (१० x १०८ x ४) + (१० x १०८ x ४ x १०८) = ४७०८८० हैं। __ इसके आगे "तृतीय कोट (साल) है, जिसका समस्त वर्णन धूलिसाल कोट के समान है। इसके आगे छठवीं "कल्पभूमि है, जो दस प्रकार के कल्पवृक्षों से तथा अनेक वापिकाओं, प्रासादों, सिद्धार्थ वृक्षों (चैत्य वृक्षों) से शोभित है। कल्पभूमि के दोनों पार्श्वभागों