________________
१९
श्री जम्बूस्वामी चरित्र मंद, सुगंध, शीतल एवं मनभावनी बहारें चलाने लगा। केवलज्ञान रूपी पूर्ण चन्द्रमा को पाकर तीन जगत रूपी समुद्र भी आनंद तरंगों से पुलकित हो गया।
तभी केवली भगवान के दर्शन-पूजन के लिए सौधर्म इन्द्र ऐरावत हाथी पर आरूढ़ हो एवं अन्य सभी इन्द्र और देवगण अपनी-अपनी योग्य सवारियों पर आरूढ़ हो आकाश मार्ग से गमन करते हुए शीघ्र ही प्रभु के निकट पहुँचे, सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने शीघ्र भव्य एवं जगत को आश्चर्यचकित कर देने वाले एवं इस भूतल से पाँच हजार धनुष ऊँचे समवशरण की रचना की। इन्द्र आदि सभी प्रभु के दर्शन करते हुए प्रभु की जय-जयकार करने लगे, वीर प्रभो की जय हो! महावीर प्रभो की जय हो! इसके बाद सभी अपने-अपने योग्य कोठों में बैठ गये।
सौधर्म इन्द्र का मन-चकोर प्रभु के आन्तरिक वैभव - अनंत केवलज्ञान, अनंत केवलदर्शन, अनंत अतीन्द्रिय सुख, अनंत वीर्य, अनंत प्रभुता, अनंत विभुता, अनंत आनंद, अनंत स्वच्छता, अनंत प्रकाश, अनंत ईश्वरता आदि को अनुमान ज्ञान से तथा बाह्य में अद्भुत पुण्य के भंडार शरीर को देख-देखकर मन ही मन आनंदित हो रहा है। अहो! यह कैसी अद्भुत रचना - मानो इसे दैवी शिल्पियों ने बड़ी ही भक्ति से अलौकिक रचा। जब प्रभु ही अलौकिक हैं, तब उनका समवशरण भी अलौकिक ही होना चाहिए; जिसमें अंतरिक्ष में विराजमान प्रभो! नभमंडल में चन्द्र के समान शोभ रहे हैं, उनका चैतन्यबिम्ब तो शरीर से भिन्न निराला ही है, परन्तु उनका देह भी समवशरण विभूति से अत्यन्त भिन्न निराला का निराला ही रहता
है।
ऐरावत हाथी [सौधर्म इन्द्र जिस हाथी पर आरूढ़ होकर आते हैं, उसकी क्या विशेषता है, उसका भी थोड़ा-सा ज्ञान कर लें]
सौधर्म इन्द्र जिस हाथी पर चढकर आते हैं, वह देवलोक में ही रहनेवाले अभियोग जाति का देव है, जो सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से अपनी विक्रिया द्वारा ही अति मनोहर हाथी का रूप धारण करके