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श्री जम्बूस्वामी चरित्र
१०५ जम्बूकुमार का केरल प्रवेश राजा मृगांक ने जम्बूकुमार के द्वारा किये गये उपकार से उपकृत हो अनेक राजाओं एवं सभी प्रकार की सेनाओं सहित वादित्रों की ध्वनियों के साथ यशोगान करते हुए कुमार को हाथी पर बिठाकर केरल नगर में प्रवेश कराया। उनकी धीर, गुण-गंभीर मुख-मुद्रा एवं अतुल बल को प्रत्यक्ष देखकर व्योमगति विद्याधर आनंद से उछलने लगा। नगर की युवतियाँ अपने झरोखों में से जम्बूकुमार के ऊपर पुष्प बरसाने लगी, मंगल गीतों के साथ-साथ नाचने लगीं। सम्पूर्ण सेना हर्षायमान अपने-अपने शस्त्रों सहित नाचने लगीं। चमकती हुई तलवारों का नृत्य ऐसी किरणें बिखेर रहा था, मानो चन्द्र-बिम्ब का स्वागत तारामंडल कर रहा हो।
कुमार के मित्रगण में कोई उनकी शांतमुद्रा से उनके दयामयी भावों को निरख रहे हैं तो कोई उनकी स्वाभाविक उदासीनता को देख रहे हैं। किन्हीं विचक्षण व्यक्तियों को ऐसा भय लगने लगा कि यह कषायगर्भित हिंसा का भयानक दृश्य कुमार को वैराग्य की राह न बता दे, नहीं तो हम लोग श्री विहीन, धर्म विहीन होकर कैसे जीवेंगे? कोई अपने राज्य को और कोई अपने सौभाग्य को रक्षित जानकर प्रमुदित हो रहे हैं। कोई उसे पराक्रम की मूर्ति देखता है तो कोई धैर्य की मूर्ति देखता है। कोई कुमार एवं उनके माता-पिता की प्रशंसा करता है तो कोई कुमार के राजा की प्रशंसा करता है। कुमार शांत भाव से सबके ज्ञाता-दृष्टा हैं।
इतने में ही राजमहल का द्वार आ जाता है, जो मणि-रत्नों के तोरणों एवं दीपमालाओं से सुशोभित है। जम्बूकुमार ने उनकी शोभा को देखा या नहीं देखा, परन्तु वे अपने अन्दर के गुणरत्नों की शोभा को अवश्य देख रहे हैं। जम्बूकुमार ने धीरे-धीरे राजमंदिर में प्रवेश किया। मृगांक की रानियाँ एवं कुमारियाँ जम्बूकुमार को देखते ही आनंदित हो उठीं। उन्होंने शीघ्र ही अतिथि के रूप में जम्बूकुमार का रत्नचूर्ण से तिलक किया और उच्च आसन पर बिठाया। उसके बाद मृगांक राजा जम्बूकुमार का सेवक बन सेवा करने लगा। उसने नाना प्रकार के तैल-मर्दन आदि कराके कुमार का स्नान करवाया। मृगांक भले ही जम्बूकुमार का सेवक हो, परन्तु जम्बूकुमार तो वीतरागी