________________ योगशास्त्रम् द्वादशः प्रकाशा // 782 // स्पष्टा // 40 // मनोजयेऽमनस्कतां परमं कारणमाह-- 18 अतिचञ्चलमतिसूक्ष्मं दुर्लभ वेगवत्तया चेतः। अश्रान्तमप्रमादादमनस्कशलाकया भिन्द्यात्।।१।। ___ अमनस्कमेव शलाका प्रहरणविशेषः शेष स्पष्टम् // 41 // पुनरमनस्कोदये योगिनः फलमाह विश्लिष्टमिव प्लुष्टमिवोडीनमिव प्रलीनमिव कायम् / अमनस्कोदयसमये योगी जानात्यसत्कल्पम् // 42 // स्पष्टा // 42 // तथा-- समदैरिन्द्रियभुजगै रहिते विमनस्कनवसुधाकुण्डे / मग्नोऽनुभवति योगी परामृतास्वादमसमानम् // 43 // स्पष्टा // 43 // तथा रेचकपूरककुम्भककरणाभ्यासक्रमं विनाऽपि खलु / स्वयमेव नश्यति मरुद्विमनस्के सत्ययत्नेन // 44 // स्पष्टा // 45 // तथा 1782