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वात्स्यायनभाष्य के एवा बीजा पण ग्रंथनो आश्रय लीधेलो छे. जे जे स्थळे ए पाठ सुधारेलो छे ते बधे स्थळे ए सुधारो जे ग्रंथने आधारे करवामां आव्यो छे ते ग्रंथनो पाठ " " आ निशानमा नाना अक्षरोमां मूकेलो छे अने साथे ते ते ग्रंथनां पृष्ठ पंक्ति पण आपेलां छे.
जे विशेष अशुद्ध पाठोने अमे सुधारी नथी शक्या ते पाठो पासे ? आवु शंकाचिह्न मूकेलं छे अने केटलाक खंडित पाठोनी नीचे 'ए पाठो लगभग खंडित लागे छे' एवी नोंध पण करेली छे.
आ टीकाना दरेक वादस्थळमां पहेलां वीगतवार पूर्वपक्ष करवामां आवेलो छे अने पछी उत्तरपक्षमा ते पूर्वपक्षनी प्रत्येक दलील- खंडन करवामां आवेलुं छे. उत्तरपक्षमा ज्या ज्या पूर्वपक्षनी जे जे दलील, खंडन करवामां आवेलुं छे ए दरेक दलील पूर्वपक्षमां क्या क्यां आवेली छे तेनुं स्थळ सूचववा अमे दरेक उत्तरपक्षना पानानी नीचे लींटी दोरीने पूर्वपक्षनी ते ते दलीलोनां पृष्ठ पंक्तिओ आपेलां छे, जेने जोवाथी प्रत्येक जिज्ञासु उत्तरपक्षने वांचती वखते पूर्वपक्षनी ए ए खंडनीय दलीलोने सहेलाईथी बराबर समजी शकशे.
___ आ उपरांत ज्यां ज्यां टीकाकारे 'अमे आ वात पहेलां कही छे' एवं लखेलुं छे, त्यां जे स्थळे ए वातने टीकाकारे कहेली होय ते स्थळनां पण पृष्ठ पंक्तिओ यथाशक्य आपेलां छे.
केटलेक स्थळे अमे प्रतिपाद्य विषयनी आदिमां { आवा चिह्ननो अने अंतमा } आव। चिढनो उपयोग करेलो छे अने ए बन्नेनुं एटले { } आ निशाननुं नाम 'दूरान्वयसूचक' चिह्न राखेखें छे. ते एटला माटे के, ज्या ज्यां कोई विषयना प्रतिपादनमा वच्चे बीजी पण लांबी टुंकी चर्चाओ चाले छे त्यां ते प्रसंगे चालेली चर्चाओनां आदि अंत जाणी शकाय. जूओ ग्रंथर्नु पृ० ५७ पं० १४-पृ० ५९ पं०३२।
___ आ पहेलो भाग तैयार करवामां अमने प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजीना विद्याप्रिय अने सुशील प्रशिष्य श्रीपुण्यविजयजीए घणीज किंमती सहायता करी छे ते माटे अमे तेओना ऋणी छीए.
सुखलाल
अने
बेचरदास.