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श्रुत नथी. अलबत तेओ वादमहार्णवना कर्ता कहेवाय छे, पण संगति उपरनी टीकाना विस्तृत वादो जोतां केटलाक एम पण माने छे के 'तत्त्वबोधविधायिनी' टीकानुंज बीजुं नाम वादमहार्णव हशे. गमे तेम होय पण अभयदेवसूरि दार्शनिक विषयना असाधारण विद्वान् हता, मां जराए संदेह नथी.
(२) ग्रंथनुं बाह्याभ्यन्तरस्वरूप
बाह्यखरूपः प्रस्तुत ग्रंथमां मूळ अने टीका ए बे अंशो छे. मूळनुं नाम संमति अ टीका नाम बोधविधायिनी छे. मूळ प्राकृत भाषामां अने टीका संस्कृत भाषामां छे. मूळनी रचना आर्यापद्यमय अने ते त्रण भागो ( काण्डो ) मां वहेंचाएली छे. टीकानी रचना गद्यमय छे. मूळनुं परिमाण १६७ गाथाओ जेटलुं छे. पहेला काण्डमा ५४, बीजामां ४३ अने त्रीजामां ७० गाथाओ छे. टीकानुं परिमाण २५००० श्लोक जेटलुं छे.
आभ्यन्तरस्वरूपः मूळ अने टीका बन्नेना विषयो विषयोनी चर्चा तेमां अनेकान्तदृष्टिए करवामां आवी छे. व्याप्ति तथा तेनी उपयोगिता सिद्ध करवामां आवी छे. दार्शनिक ग्रंथ कहेवो जोईए.
दार्शनिक छे, परंतु ते बधा दार्शनिक ते रीतेज अनेकान्तदृष्टिनुं स्वरूप, तेनी तेथी प्रस्तुत ग्रंथने अनेकान्तदृष्टिनो
मूळनी प्रतिपादनसरणी आगमाश्रित छतां तर्कसंगत छे. तेमां जैनआगमप्रसिद्ध नय, सप्तभंगी, ज्ञान, दर्शन, द्रव्य, पर्याय विगेरे पदार्थोंनुं तार्किक पद्धतिए पृथक्करण करी अनेकान्तनुं स्वरूप बताववामां आव्युं छे अने ते पण प्रधानपणे आगमिक प्राचीन जैनाचायोंने अभिलक्षीने. टीकानी शैली बिलकुल जूदी छे. तेमां अन्य दर्शनोना निरसननी दृष्टि मुख्य छे. मूळ जेटलं टुंकुं छे, तेटलीज टीका विशाळ छे. टीकाकारे जे जे विषयना वादो लख्या छे, ते ते विषय उपर वखते भारतीय समग्र दर्शनोमां जेटला मत मतान्तरो अने पक्ष प्रतिपक्षो हता, ते बधानी विस्तृत नोंध करी छे. तेथी आ टीकाने विक्रमनी दशमी शताब्दी सुधीना दर्शनविषयक वादोनुं संग्रहस्थान कही शकाय .
ग्रंथनी मुख्य दृष्टि अनेकान्तनुं महत्त्व विचारीने टीकाकारे वादपद्धति विद्वत्तापूर्वक एवी गोठवी छे के, जे विषयमां वाद शरू करवानो होय, ते विषयमां सौथी पहेलां सिद्धान्तथी वधारे वेगळो एवो पहेलो पक्षकार आवी पोतानो मत स्थापे छे, त्यारबाद सिद्धान्तथी ओछो वेगळो एवो बीजो पक्षकार आवी पोताना मतने स्थापी प्रथम पक्षनी भ्रान्तिओ दूर करे छे; त्यारबाद सिद्धातनी कंईक समीपे रहेलो त्रीजो पक्षकार आवी बीजा पक्षनी भूलो सुधारे छे, अने ए क्रमे आगळ वधतां छेवटे अनेकान्तवादी सिद्धान्ती आवी छेल्ला प्रतिपक्षीनुं मन्तव्य शोधी अनेकान्त दृष्टिए ते विषय केवो मानवो जोईए, ते बतावे छे. आवी वादपद्धति गोठवेली होवाथी कोई पण विषयमां प्रत्येक पक्षकारनुं शुं मानवुं छे, अने एक बीजा पक्षकार वचे शो शो मतभेद छे, अने तेमां केटटलं वजूद छे, ए बधुं तुलनात्मक दृष्टिए जाणी शकाय तेथी टीकाकारनी प्रतिपादन सरणीने अनेक वादीओनी चर्चापरिषद् साथै सरखावी शकाय के, जेमां कोई पण विषय उपर दरेक वादी पोतपोतानुं पूर्ण मन्तव्य स्वतंत्रतापूर्वक अनुक्रमे रजु करता होय, अने छेवढे जेमां एक सर्वविषयमाही सभापति द्वारा समन्वयभरेलुं छेवट लवातुं होय.