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________________ २३३ तत्का ८२२] [धर्मसंग्रहः णिप्फण्णस्स य सम्म, तए णं से सुबाहुकुमारे [वि.श्रु.२/१] १६५ [पञ्चा.८/१६] ४४८ | तओ पभावईदेवीए [नि.सू.] २३१ णियत्तस्स इहलोए [आ.चू.] तच्चाए वि एवं, [पञ्चा.१८/१७] ६९३ णिरुद्धवासपरिआए [व्य.३/१०] ७३५ तच्छुद्धौ हि तत्साफल्यमिति [ध.बिं/९९] ४२ णीयावित्ती अचवले, [ उत्त.३४/२७] ४८९ | तजुव्विआ अरहया [आ.नि./५६७] २७९ ण्हवणच्चगेहिं छउमत्थ तज्जम्मे केवलपडिसेह- [ ] ७७१ [चै.भा./१२] २३५ तज्जाए पडिहणइ, [ ] ३१५ ण्हवणविलेवणअंगंमि, [ ] २३६ | तज्जायजुत्तिलेवो, [ओ.नि./४०२] ५४९ ण्हवणविलेवणआहारण- [ ] २३० तज्ज्ञानमेव न भवति [ ] ३९४ ण्हविअविलित्तं, [श्रा.वि./१२वृ.] ४२९ | तणगपणगं पुण [प्र.सा./६७५] ५८३ पहाणंगरायधूवण- [श्रा.वि./१२वृ.] ४२२ | तणगहणानलसेवा- [ओ.नि./७०६] ५७६ ण्हाणाइ वि जयणाए, [पञ्चा.४/१०] २२४ तणडगलछारमल्ल- [य.दि./१८७] ५४१ णंदाइ सुहो सद्दो, [पञ्चा.७/१९] ४४३ | तण्हावुच्छेएण य, [आ.नि./१५९५] ३४१ [त] ततो गिरिसरिद्ग्राव-[ यो.शा.१/१७वृ.] ५६ तं च चेइअवंदणं [वन्द.चू.] | तत्कारी स्यात् [यो.बि./२४०] ५ तं च ण सिस्सिणिगाओ, | तत्तायगोलकप्पो, [ श्रा.प्र./२८१] १२३ [पञ्च./१३३४] ७४८ | तत्तो अ अट्ठमीआ, [पञ्चा.१८/१४] ६९२ तं चेव असंथरणे, [पिं.वि./५६] ५३२ | तत्तो अ जहाविहवं, [प.व./१२४] ४८० तं ण्हवणसंति- [प.च.२९/६] २४६ | तत्तो अ विमलबुद्धी, [पञ्चव./३३] ५३ तं तत्थ अत्थरित्ता, [य.दि./३५८] ६४२ | तत्तो उठ्ठित्तु गुरू, [य.दि./१२] ५११ तं न दुक्करं जं [नि.चू.] ४४० | तत्तो गुरू परिणा, [ओ.नि./६२९] ५६८ तं नाणं तं च विन्नाणं, तत्तो चरित्तधम्मो, [आ.नि./१५९६] ३४१ [श्रा.दि./९९] २९७ | तत्तो नमो जिणाणं तं पुण पिइ-माइ- [हि.मा./२७२] ३५४ [चे.वं.म./१८९] २४१ तं शब्दमात्रेण [ ] ४१ | तत्तो नयरंमि रहो, [श्रा.वि./१२वृ.] ४२९ तं सत्तिओ करिज्जा, [आ.चू.] १५९ | तत्तो निसीहिआए [चे.वं.म./१९३] २४२ तइअं तु छंदणदुगे, [गु.भा./४] २९९ | | तत्तो पडिदिणपूआ, [पञ्चा.८/५०] ४५२ तइअं पमज्जणमिणं, [प.व./२४३] ५०१ | तत्तो सुहजोएणं, [पञ्चा.८/२१] ४४८ तइअंमि वि एमेव य, [पञ्च./६५७] ६९६ | तत्तो विसेसपूआपुव्वं, [पञ्चा.८/४९] ४५१ तइअचउत्थे तंमि व, [पं.सं./७७८] ६१ तत्थ अवन्नासायण, [सं.प्र./८१] २९२ तइआ उ भावपूआ, [ ] २३१ | तत्थ आसायणा- [ ] ७२३ तइए निसाइआरं, [प्र.स./२७] ३८६ | तत्थ कप्पकरणाय [प्रा.सा.द्वा./२०] ७६३ तइयाए पोरिसीए, [य.दि./१७०] ५१८ | तत्थ करंतु उवेहं, तए णं सा दोवई [ ] [पं.क.भा./१५७१] २९५ २५८ D:\d-p.pm5\3rd proof
SR No.009692
Book TitleDharma Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2011
Total Pages446
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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