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________________ ( २९७ ) में बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरि के पट्ट को मुक्ताहार के समान सुशोभित करनेवाले श्रीरामचन्द्रसरिने अपने आत्मश्रेयार्थ जीरापल्लीतीर्थ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई । जीरापल्लीयगच्छ के सकल संघ को शुभकर हो। जब तक पृथ्वी रहेगी, सुमेरु रहेगा और सूर्य, चन्द्र गगन में प्रकाशक रहेंगे तब तक यह देवकूलिका लोगों के द्वारा प्रशंसा पाओ।" सकल संघ और जीरापल्लीयगच्छ का मंगल होवे । (३१०) देवकुलिका नं०४९ " श्रीपार्श्वनाथ भगवान अपने सात फणों के द्वारासंसारवासियों एवं संघ समुदायों की सिंहादि और रत्नप्रमादि नरक सम्बन्धि सात भयों से रक्षा करते हैं, वे पार्श्वप्रभु आप लोगों का रक्षण करें।" सं० १४११ चैत्र१० ६ बुधवार के दिन अनुराधा नक्षत्र में बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरि के पदृधर श्रीजिनचन्द्रमरि के गादीघर तप से नमे हुए तफरूप धनवाले तपस्वी साधुओं के परिवार से परिवेष्टित जीरापल्लीय श्रीरामचन्द्रसरिने पवित्र श्रीपार्श्वनाथ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई । " जब तक पृथ्वी, सुमेरुपर्वत और आकाश में प्रकाशमान सूर्य चन्द्र स्थिर रहें तब तक यह देवकृलिका अभिनन्दिता ( जयवती) रहो ।" "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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