SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चकुलिका का शिकार के उपदेश सर मीमसिंह ना (२९६) देवकुलिका का शिलान्यास सं० १२६३ में श्रीजयसिंहसरि के पधर श्रीधर्मघोषसरि के उपदेश से हुआ । सं० १२६५ में ये आचार्य जालोर गये थे और वहाँ पर मीमसिंह नामक क्षत्रिय को प्रतिवोध देकर सहकुटुम्ब जैनधर्मी बनाकर ओसवालज्ञाति में सम्मिलित किया था। इस घटना से इन आचार्य का सिरोही प्रान्त में सं० १२६३ में विहार हुआ होना ही चाहिये, प्रमाणित हो जाता है। (ब) सं० १४८३ भाद्रपदकृ०७ गुरुवार के दिन तपागच्छनायक श्रीदेवसुन्दरमरि के पट्टभूषण मट्टारक श्रीसोमसुन्दरसरि श्रीमुनिसुन्दरमरि श्रीजयचन्द्रसरि श्रीभुवनसुन्दरसूरि के उपदेश से खंभातनिवासी ओसवालज्ञातीय सोनी नरिआ पुत्र सोनी पद्मसिंह (लक्ष्मणसिंह) भार्या आल्हणदेवीने जीरापल्लीतीर्थचैत्य में चतुष्किका के ऊपर शिखर बंधवाया। (३०९) देवकुलिका नं०४८ "अपने सप्त-फणों के द्वारा श्रीपार्श्वनाथप्रभु संसारवासियों की और श्रीसंघों की सात भयों और सात नरक के भयों से रक्षा करते हैं, वे पार्श्वनाथ आपलोगों का रक्षण करें।" सं १४१३ फाल्गुनशु० १३ के दिन स्वातिनक्षत्र "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy