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१ शृङ्गार--रामचन्द्र, रामलाल, प्रेमचन्द्र, वृद्धिचन्द्र।
शान्त राम, प्रेम, वृद्धिचन्द्र, वृद्धा। करुण--राम, राम, प्रेम, प्रेमू, वृद्ध, वृद्धा । २ वीर-रामसिंह, रामल, प्रेमल, प्रेमसिंह, वृद्धिसिंह ।
रौद्र रामसी, प्रेमसी, वृद्धसी, वरदसी। हास्य-रामो, प्रेमो, वरदो। ३ भयानक-रामा, प्रेमा, वरदा ।
बीभत्स-रामला, प्रेमला, वरड़ा। अद्भुत-राम्या, प्रेम्या, वरद्या । प्रस्तुत पुस्तक में आये हुए नाम रजोगुणी एवं तमोगुणी रसों की रचना है। यवन आततायियों का हिन्दुओं पर अत्याचार, राजा राजाओं में परस्पर मान एवं मिथ्या गौरव को लेकर द्वन्दता और उसमें भोली प्रजा का सर्वनाश, व्यापार एवं कृषिकी हानि, तलवार के अनियों का निर्बलों पर, व्यापार एवं कृषिप्रियतथा शुद्ध जातियों पर आतंक और अत्याचार, रात-दिन युद्ध में लगे रहनेवालों के लिये व्यापारी एवं कृषकवर्ग को तथा शूद्रों को आयुभर बैठ और बैगार करते रहना, योद्धाओं का म्यान और योद्धाओं की सुविधा के लिये व्यापारी, शूद्र और कृषकवर्ग के इस प्रकार अमानुषिक उपयोगने युग की शान्ति को भंग कर दिया, गृहस्थ का सुखमरा जीवन
"Aho Shrut Gyanam"