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________________ (१४ ) नष्ट कर दिया, प्रेम, स्नेह और सहानुभूति की इतिश्री कर दी । इस प्रकार व्यापारी, शूद्र एवं कृषकवर्ग लगभग ५०० वर्षों तक पददलित और आतंकित रहा, उस समय विप्र पूजनीय और क्षत्री योद्धा होने के कारण सम्माननीय थे। क्षत्री लोग, व्यापारी, शूद्र एवं कृषकवर्ग के पुरुषों को एक-शब्दात्मक और वह भी अपमान जनक नाम लेकर बोलाते थे । जैसे मूलचन्द्र को मूला, मूले, मूलिया, मूल्या और योद्धाओं को मल्हण, मल्लण, मूलसी एवं मूलसिंह कह कर बोलाते थे। इस प्रकार यह हुआ कि इन वर्गों के नाम ऐसे ही रहने और पड़ने लगे । अंतर इतना हुआ कि मूला, मल्हण, मूल्लण व्यापारी एवं कृषकवर्ग के पुरुषों के नाम रहे और मृलिया, मूल्या, मृला शूद्रवर्ग के पुरुषों के नाम पड़े । मेरे विचार से अब पाठक समझ गये होंगे कि नामों की इस वैचित्र्यपूर्ण रचना और प्राकृति में वह अशान्त युग झलक रहा है । ये नाम उस युग की वैज्ञानिक एवं रासा. यनिक प्रन्थियाँ हैं, उस युग के वातावरण के, पारस्परिक न्यवहार के, सभ्यता नैतिकतापूर्ण सम्बन्ध के घट हैं, पाठ हैं। नामों की यह आकृति उपहास एवं विस्मय की वस्तु नहीं, वरन इतिहास की संरक्षणीय एवं संग्रहणीय संपत्ति है। अनुक्रमणिका का महत्व.. बिना कुंजी के एक ताला खोलने में कितना समय "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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