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( १२ ) अत्याचार, बलात्कार रुक-से गये थे। प्रेम और शान्ति का वातावरण पुनः जाग्रत होने लगा था। मनुष्य जब क्रोधातुर, बाक्रोश में होता है, अथवा राग-द्वेष भरे शब्दों में बोलता है या किसी अन्य पुरुष के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करता है, उस समय वह मेघराज के स्थान पर मेवा, रामचन्द्र के स्थान पर रामा बोलता है। युद्ध करते समय देल्हण, परहण, मल्हण, साजण, राउल आदि नामों का प्रयोग प्रिय, सहज एवं उत्साह वर्धक होता है।
रामादे, माल्हणदे, साजणदे आदि स्त्रियों के नामों से हमें उस समय के वीरपुरुषों की देवी अर्थात् रणचण्डिका के प्रति आस्था और श्रद्धा का परिचय मिलता है और साथ ही स्त्रियों में भी रौद्रभाव अथवा औजस्व मरा होता है और उस समय में स्त्रियों में रहे हुए ये भाव जाग्रत और पृद्धिगत रहने चाहिये थे का परिचय मिलता है। रामा और राम का प्रयोग प्रेमभरा भी कहा जा सकता है, लेकिन मात्र बच्चों के लिये । एक ही नाम को भिन्न भिन्न रसातिरेक में किस प्रकार तोड़मरोड़ कर अपभ्रंसित कर बोला जाता है का उदाहरण नीचे देखिये । इस उदाहरण के देने का मूल अर्थ यह है कि उस काल में किस रस का अतिरेक था। पाठक भलिविध समझ सकेंगे। शृङ्गार, शान्त और करुण रस सतोगुणी हैं; हास्य, वीर और रौद्र रजोगुणी तथा भया. नक, बीभत्स और अद्भुत रस तमोगुणी हैं।
"Aho Shrut Gyanam"