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________________ प्रतिष्ठा करवाई अर्थ लेना पड़ता है । जहाँ प्रतिष्ठा हुई हो, अगर ग्राम का नाम भी दिया हो तब तो कोई प्रश्न ही नहीं बनता है। व्यवहारी, श्रेष्ठि के नामों की विचित्रता प्रथम बात जो यहाँ कहनी है वह यह है कि नामों में आजकल जो लाल, चन्द्र, राज, सिंह, देव, मल आदि प्रत्यय होते हैं वे १६ वीं शतान्दि से पूर्व के नामों में प्रायः नहीं मिलते, अर्थात् नाम एक-शब्दात्मक ही होते थे या लिखे जाते थे । एक-शब्दात्मक नाम का रूप भी कहीं कहीं ऐसा विचित्र मिलता है कि इस विकाश के युग में भी जिसका अर्थ और रूप समझना बड़ा कठिन हो जाता है। उस समय के पुरुषों और त्रियों के नामों के उच्चारण की ध्वनि उस युग के वातावरण की अनुमारिणी थी-यह ऐतिहासिक या वैज्ञानिक तत्व इन नामों की बनावट में ओत-प्रोत समाया हुआ है, या यों कहना चाहिये कि उस युग ने ही नामों की ऐसी एक शब्दात्मक रचना की । दशवीं शताब्दी से भारत में यवनों के आक्रमणों का जोर बढ़ चला था। चारों ओर क्रोध, उत्साह, घृणा, जुगुप्सा, आक्रोश के भाव बढ़ते चले जा रहे थे, जिनका अन्त अकबर बादशाह के समय में जा कर होना प्रारम्भ हुआ | अकबर बादशाह के समय में बाहरी आक्रमणों का अन्त पूर्णतः हो गया था और सर्वत्र "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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