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________________ ( २११ ) प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नमरि के उपदेश से हडियानगर के श्रीसंघने की। (५७) - सं० १३६९ वैशाखक. ८ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय परीक्षक मंडराज के श्रेयार्थ उसके पुत्र पाताने श्रीचतुर्विंशतितीर्थकरों का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीभुवनानन्दमूरि के शिष्य श्रीपमचन्द्रसूरिने की। (५८) सं० १४८८ ज्येष्टशु०३ सोमवार के दिन श्रीमालज्ञातीय माहणसिंह जयन्तसिंह भा० जयतलदेवी पुत्र वीरधवल हरिधवल विक्रमने एकमत होकर मातापिता और स्वकल्याणार्थ श्रीविमलनाथ चतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा त्रिभक्यिा पिष्पलाचार्य श्रीधर्मशेखरररिने की। (५९) सं० १५१७ पौषकृ० ५ (गुरुवार) के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्यव० माहण पुत्र व्य. सूरा भा० सुहवदेवी पुत्र व्य० सूदा, राणाने अपने कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ चतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भ. श्रीधर्मशेखरसागरसूरिने थरादनगर निवासी सर्व पूर्व पुरुषों की शान्ति बढ़ाने के लिये की। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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