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________________ ( २१२) (६०) सं० १४८२ वैशाखक० ४ गुरुवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्यव. ऊदिर भा. हांसलदेवी पुत्र भोला मा० मावलदेवी पुत्र नेमा, लूणाने माता पिता तथा भ्राता हेमला के कल्याणार्थ श्रीअजितनाथ चतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभरिया श्रीधर्मप्रभमूरि के पट्टधर श्रीधर्मशेखरसरिने की। (६१) सं० १५१६ पौषक. ५ गुरुवार के दिन थरादनिवासी थिरापद्रगच्छानुयायी श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० सूरा मा० श्रीदेवी पुत्र वीसलने भा० नीनादेवी, पुत्र धीरा, काला, कुटुम्ब सहित अपनी माता और पिता के कल्याणार्थ श्री श्रेयांसनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री विजयसिंहमूरिने की। (६२) सं० १४५३ वैशाखशु० २ सोमवार के दिन ओसवाल.वंशीय महं० माहण भा० आल्हणदेवी पुत्र लूणा, वाछा, वैरमल, केल्हा आदि भ्राताजनोंने अपने माता भ्राता सर्व जनोंके अर्थ श्रीचतुर्विशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा जीराउलीपुरीगच्छीय श्रीवीरचन्द्रसरि के पट्टधर श्रीशालिभद्रसूरिने की। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009682
Book TitleJain Pratima Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri, Daulatsinh Lodha
PublisherYatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
Publication Year1951
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size5 MB
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