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उपाध्याय श्री समयसुन्दरजा कृत श्री अष्टापदजी शांतिनाथजी का स्तवन
दाल १ -- मोरा साहिब हो पहनी चाल ] अष्टापद हो उपर लो प्रासादको, वोदे संघवी करावीयो । जिण लीधो हो सषमीनो लाइकी, पुन्य जंडार जरावियो ॥ श्र! मोरा साहिव हो श्री शांति जिनन्दकी, मनहर प्रतिमा सुंदरु । निरषतो हो याये नयणानन्दकी, पंडित पूरण सुरतरु ॥ ०१ देहरे में हो पेसंता वार की, सेर्जेज पाटस्युं देखिये। जमती में हो बहु जिनवर विम्ब की, नयणे देखी थानन्दिये ॥ १०३ सतरे सै हो तीर्थकर देव की, विडं पासे नमुं वारणे। गज उपर हो चढीयो माय नै वाप को, मूरति सेवा कारणे ॥ ४ अति ऊंचो हो सोहै श्रीकार की, दंड कलस ध्वज लह लहे । धन्य जीव्यो हो तेह्नो प्रमाण की, यात्रा करी मन गह गहे ॥ श्र०५ जैसलमेर हो पनेरेसे बत्तीस (१५३६) को, फागुण सुदि तीजे यश लीयो। खरतर गल हो जिन समुअसूरीस की, मूलनायक प्रतिष्ठियो । श्र० ६ हित जाण्यो हो श्री शान्ति जिनन्द की, तूं साहिब डे माइरो। समयसुन्दर हो कहे वेकर जोडि को, हुं सेवक बु ताहरो ॥ थ०७
इति उ० श्रो समयसुन्दरजी कृत 4 श्री अष्टापदजो शांतिनाथजी का स्तवन सापूर्ण । * श्री समयसुन्दरजी के पदों से ज्ञात होता है कि आप विद्वान और करिके अतिरिक राग रागणी और देशी बालों के अच्छे वेत्ता थे । अद्यायधि इनके बनाये हुये सैकड़ों पद तथा रास, सिझाय आदि मिलते हैं। प्रवास है कि "समयसुन्दरजीरा गोतड़ा, भोता, वोटरा" अर्थात् इनके रचे हुये पद इतो मिलते हैं कि उनको संख्या करनी कठोन है ।
"Aho Shrut Gyanam"