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सोम बदन मूरति जलो, श्री शीतल जिन राय । सुयश लियो डागे जलो, महिमा अधिक कहाय ॥ छ मुलनायक सुहावनो, श्री चिंतामणि पास | धन से सरादिये, खरच्यो द्रव्य उल्लास ॥ ७ जिनवर धाव सुहावना, शोजित नलिनी विमान । दंड कलस ध्वज छह लड़े, जग मग कनक ज्युं वान ॥ १० जैसलमेरु नगर जलो, रावल सवल नरीन्द्र । राज प्रजा सुखिया सदा, दिन २ परमानन्द ॥ ११ सम्वत् सतर तोतरे ( १७०० ) श्रावण मास उल्लास । महिमासमुद्र जिनचंदने, होत्रे लील विलाश ॥ १२
इति श्री महिमासमुद्रजो विरचित चेत्यपरिपाटी स्वयन सम्पूर्ण ।
"Aho Shrut Gyanam"