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[ ढाल ३ -- कागलीयाणो] श्रावो श्रष्टापदै रे, आपद जाय अलग्ग । कुंथ प्रासाद करायौ सिंघवी रे, जेहनौ यशकहै जग्ग ॥ जिए वाहिरली जमती तिम चौकमै रे, जिन एकसौ सेतोस। दोसौ साठ गुजार दूसरे रे, गणधर अहावीश ॥ जि० १० सोलम संति जिनेश्वर सेवोई रे, हितसौ उपर देव । जमती वाहिरली मइ नेटिय रे, दोश्सो चालीस देव ॥ जिए ११
चौक मांहे जिंहा प्रतिमा च्यारस रे, जरियो पुण्य जंडार ॥ जि० १२
[ढाल ४ -- करम परीक्षानो] नमीयै तिहाथी संजवनाथजी रे, तीजौ जिनवर तेह ।। चावो तीरथ कोधो चोपडै रे, एहनो सुयश अ६ ॥ जि० १३ चाहिरले चोकै प्रतिमा दोसो रे, माहि अढ़ी से इकतीस। . त्रीस मंडप विचलै उंची रे, गंचारै चौवीस ॥ जि० १४ वार माहिती जमती वोखीय रे, दोपै थंना दो। रचना सह तपनी पाटे रची रे, यंत्र तिके तूं जोय ॥ जि० १५ डागे जलो रचायो देहरो रे, शीतल नै जिहां शांति । त्रिणसै नै चवदै प्रतिमा तिहारे, जेटीजै तजि ब्रांति ॥ जि० १६
दाल ५ – चरण करणनी] विधि चैत्यालै जिनवर वंदोये, संघचतुर्विध साथ । शकस्तव ए वेकरि शुज विधे, प्रणमा पारशनाथ ॥ जि० १७
____ * यह गाथा 'प्राचीन तोर्थमाला संग्रह' (पृ. १४७) में बुटक है। बहुत खोज करने पर भी दूमा प्रति
नहीं मिली इसलिये वैसा ही प्रकाशित किया गया ।
"Aho Shrut Gyanam"