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[ख]
श्री जिनसुखसूरिविरचित
जैसलमेर चैत्य परिपाटी
[ ढाल १ -
रसियानो ]
जिनवर जैसल जुहारियै, लीजै विषमीनों बाद । विवेक गाजे बाजे बहु गडगाट, चैत्र प्रवाड़े रे चाद ॥ वि० जि० १ पहिली परदक्षणायै प्रणमियै, जगगुरु वीर जिनन्द | वि० वर प्रासाद करायौ बरड़िये, दोपै जान जिनन्द || वि० जि० 2 पहिली जमती मांहि परतमा, एकसौ अधिक इम्यार । वि० गंजारे देहरासर मांदि, गिणौ एकसौ इक्वीस सार ॥ वि० जि० ३ गलि श्री आदिश्वर यावतां जमती बिहुं घर जाव । वि० प्रतिमा पंचाएं नै वलि पांचसै गिनती करि गुणगाव | वि०जि० ४ गंजारै नै वलि उपरि गिहूं, बाजे विंत्र उत्रिस। वि० धन प्रासाद करायौ गणधरे, जोवो धरिये जगोश ॥ वि०जि० ५
[ ढाल २.
- संभायती ]
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इमचन्द्र प्रभु जिनवर मोहियो, प्रगट बड़ौ प्रासाद । वि० भूमै तीने चौमुख नेटियै, परहो तजिये प्रमाद ॥ वि० जि० ६ जले इकसौ आणूं धूरि भूमिका, एकसी बावीस एड् । वि० तीजे भूमै चालीसे तराणवै, जिनवर राजे जेट् ॥ वि०जि० कीधी यांते जाते कोरणी, चारुं विविध विनांण । fro जपशालीयै लाज लीयो जलो, मोटो जाप विमांन ॥ वि०जि० ०
"Aho Shrut Gyanam"