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(३) से चांदमलजी का देरासर :--शाफमा गोप्रोय रतलाम पाले सेठों को होतो में यह
देरासर है।
(४) अखयसिंहजी का देरातर :-~-वाफा गोत्रीय झालरापाटन वाले सेठ अवयसिंहजी की हवेली
__ में यह देशसर है।
(५) रामसिंहजो का देरासा :---नेता रामसिंहजी बरड़िया की हबेलो में यह देरासर है ।
(६) धनराजजो का देरासर :--मेहता धनराजजो यड़िया की हवेली में यह देरासर है। यंत्र के
लेख से सं० १८६३ में इस देरासर की प्रतिष्ठा शात होती है।
शहर के उपासरा
(१) वेगडगड उपासरा :-यह उगसरा जे. दशा में है। बाहर के दोकर पर है ।
शिलालेख विद्यमान है उससे सं० १६१ में यह आलरा बारे का सपर मालूम होता है। सं० १४२२ में खरतरगच्छीय जिनोदयसूरिजी से यह वेगड़गच्छ शाखा निकली थी।
(१) वृहरखरतरगल उपासरा :-यहां देरासर भी है जिसमें श्रीगौड़ीपार्श्वनाथजी मूलनायक हैं।
मैं जिस समय यहां गया था उस समय पूज्य यति महाराज वृद्धिचंद्रजी आदेशी थे। और उनके सुयोग्य शिष्य १० लक्ष्मीचन्द्रजी भी उपस्थित थे। आपने मुझे लेख संग्रह के कार्य में विशेष सहायता दी थी । उपासरे में परम पूज्य गुरुमहाराज श्रीजिनदत्तप्पूरिजी को चादर जो वहां बड़े यत्न के साथ सुरक्षिा है और जिसको अयावधि पूजा होतो है उसे यतिजो ने मुझे दिखाई थी। आप के यहां हस्तलिखित और मुद्रित ग्रन्थों का भी संग्रह है।
(३) तपगम नपालरा :--राइर में तपाच्छोघ धनाढय थावकों के भी बहुत से घर थे। उन
लोगों के श्रीसुपार्श्वनाथजी के मंदिर के निर्माण के समय के लगभग ही उपासरा बना होगा । सादर में और भी बहुत से गच्छयालों के उपासरे मौजूद हैं परन्तु वहां भ्रायकों की संख्या हास हो जाने के कारण सब ऊजड़ पड़े हैं।
"Aho Shrut Gyanam".