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दादाजी के स्थान
सहर के बाहर कई ओर दादाजी के स्थान, पटसाल और श्मशान भूम में स्तंभों पर लेख है । उन सबों के काो लेने का मुझे अकास न मिला इस कारण खरमच्छ के भादेश यति वृद्धिबन्द्रजो महाराज के शिष्य यति लक्ष्मीवन्दजो और जोधपुर निवाली साहित्यरत्न पं० रामकर्णजी जो मेरे साथ में थे ये दोनों सजा वहां के लेखों का संग्रह किये थे। ये सघ लेख अधिकतया विकत के १७ वी शहान्दि के हैं। सहर के उत्तर में देदानतर दादाजो और गामगड़ा दादाजों हैं। इन दोनों के मध्य में आड़ा एक छोटा सा पहा है इस कारण दोनों स्थानों में एक माइल का अन्तर है । पश्चिम की ओर सहर के दरवाजे के बाहर श्र.जिनकुश लसूरिजो का स्तम्भ है और दक्षिण की तर्फ गंगासागर नामक एक तालार है। वहां गोडावेजो महाराज को पादुका है । इसी दिशा में सहर के पास गड़सोसर तालाब है । उसके अप्रभाग में गोडोचेज) को पटसाल है और श्रोजिनदत्त. सरिजी का स्तम्भ है । इसी दिशा में श्रीजितकुशलसूरिजो का स्थान है । सहर के उत्तर की तफै लगा दो माइल पर 'गजरूपलागर' नामक तालाय है । यह सरोवर प्रायः सो वर्ष हुये महारावल गजसिंहजो अपने नाम से बनवाये थे। उक्त गजरूरसागर के समोर में भो श्रीजितकशालसरिजो का स्तंभ है पस्तु यहां कोई देख नहीं है।
अमरसागर
यह स्थान जैललमेर से पश्चिम पांच माइल पर और मूलसागर से एक माइल पर अवस्थित है। यहां जिन मंदिर की संख्या तोन है और तीनों के मूलनायक श्रोआदीश्वरजो है। इन में से एक मन्दिर जिसको प्रतिष्ठा सं० १९०३ में हुई थो वह पंचायतो को तरफ से बना था । अवशिष्ट दो मन्दिर वहां के प्रसिद्ध बाफणा सेठों के यनवाये हुए हैं। छोटा मंदिर याफणा सवाईगमजी का सं० १८६७ में और बड़ा मन्दिर बाणा हिम्मतराजी का सं० १६२८ में बना था । इन दोनों मन्दिरों को प्रतिष्ठा खरतराच्छाचार्य जिनमहेंद्रसूरिजी के हाथ से हुई थी। बड़ा मंदिर बहुत हो सुन्दर दोमझिला विशाल बना हुआ है । सन्मुख में सुरम्य उद्यान है और उसको कारोगरो प्रशंसनीय है । मंदिर के दृश्य का चित्र पाठकों को पुत्ता में मिलेंगे और वित्रों से यहां के मकराने के जालियां के शिलपकार्य का सौंदर्य कुछ अनुभव होगा। रिशा मरुभूमि में ऐला मूल्यवान् भारतीय शिपाला का नमूना एक दर्शनोय वस्तुओं को गणना में रखा जा सकता है। इस मंदिर में प्रशस्ति के शिवाय पोडे पाण में खुश हुआ तोयात्रा के संघ वर्णन का एक १६ पंक्तियों का शिलालेख ( नं० २५९० ) है । इतने पंकियों का लेख मेरे देखने में नहीं आया । यह राजस्थानी हिन्दी में लिखा हुआ है।
"Aho Shrut Gyanam"