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________________ २५ लूणकरण (नूनकरण )--जयत सिंह के पुत्र थे। संवत् १५८५* के माघ महीने के पहले ही राज्याधिकारी हुये थे, यह लेख नं० २१५५ से सिद्ध है। ई० १५४१ (सं० १५९८ ) में इन्हों ने सम्राट् हुमायू का सामना किया था। परन्तु इतिहास में इनके राज्यकाल का और कोई संवत् मिला नहीं। व्यालजी ने इनका स० १५८६-- १६०७ (ई० १५२८ -१५५० ) लिखा है। २६ मालदेव-लूणकरण के ज्येष्ठ पुत्र थे। टाइ साहेब अपने इतिहास में इनका राज्य करना नहीं लिखे हैं। लेखों में भी नाम नहीं मिला । राज्यकाल सं० १६०७--१६१८ (ई. १५५० -१५६१ )। २७ हरराज-मालदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। टाड इनको लूणकरणजी के प्रथम पुत्र लिखते हैं परन्तु इनका राज्य करना नहीं लिखे हैं । लेखों में भी इनका नाम नहीं मिला। सं० १६१८-१६३५ ( ई० ११६१ - १५७७ ) तक सिंहासन पर थे। २८ भीमनी (भीमसेन ) हरराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० १६३४ (६० १५७७ ) में सिंहासन पर बैठे । लेख ० २५६४ और. २५०५ से इनका संवत् १६५० और १६६३ में राज्य करना स्पष्ट है । सम्राट मकबर के 'आरन अकबरी' में इनफा हाल मिलता है। • व्यासजी के इतिहास में है कि महारावल जंत सिंह के स्वर्गवास के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र कम्सो रिता को गद्दी पर बैठे, परन्तु एक पक्ष राज्य करने के याद हो उनके लघुभ्राता लू गकरण यवनों को सहायता से उनको सिंहासन च्युन करके संवत् १९८६ में राज्य पर अपना अधिकार किया। प्रशस्ति का शिलालेख (नं० २९५५ } में वर्णन है कि संवत् १५८१ में जैतसिंह के समय लूणकरण (कुमर) और संवत् १५८३ में लूणकरण ( युवराज } विद्यमान थे। जैनसिंह के ज्येष्ठ पुत्र कसो (करणसो ) का लेखों में कोई उल्लेख पाया नहीं जाता है। * इस समय के इतिहास के खोज की आवश्यकता है । टाड साहेब अपने इतिहास में लिखते हैं कि लणकरणजी के हरराज (१), मालदेव (२) और कल्याण दास (३) नामक तीन पुत्र थे । हरराज के पुत्र भोम थे जिनको लूणकरण के बाद राज्य करना लिखते हैं और लूणकरण के तीनों पुत्रों में किसा को राज्या. नहीं लिखे हैं। आप भीमजो के बाद, कल्याणदासजी के पुत्र मनोहरदासजो का राज्य करना लिखते हैं । व्यासजी अपने इतिहास में लूणकरण के पुत्र मालदेव का ११ वर्ष राज्य करना और मालदेव के पुत्र हरराज का १६ वर्ष राज्य करना लिखते हैं और हरराज के भोमजी और कल्याणजी आदि चार पुत्र लिखते है। इनमें से हररराज के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र भीमजो का सरत् १६३४ में गद्दी पर पैठना और ४६ वर्ष राज्य के पश्चात् संवत् १६८० में इनके देहान्त के बाद इनके भ्राता कल्याणजी का उसो संवत् मैं गद्दी पर बैठना लिखते हैं। लेखों में कल्याणदासजी का महारावल होना और राज्य करना स्पष्ट वर्णित है । टाड साहेब को इस समय का सटीक इतिहास नहीं प्राप्त हुआ होगा । 'राजपुताना गजेटिअर' में भी मोमजी के बाद कल्याणदासजी का राज्य करना. लिखा है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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