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२६ कल्याणदास ( कल्याण सिंह )-भीमजो के कनिष्ठ भ्राता थे। भीमजी के सात वर्ष के कुअर को दिए
प्रयोग से मरवा कर स्वयं राजसिंहासन पर बैठे। व्यासजी सं० १६८० में इनका गद्दी पर बैठना लिखते हैं परन्तु लेख नं० २४६७ से इनका सं० १६७२ में शासनकाल सिद्ध है। सं० १६७५ में इनके समय में लोद्रवा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था परन्तु प्रशस्ति में तथा वहां के मूर्तियों के लेखों में इनका उल्लेख नहीं है। संभव है कि उस समय इनके कुकृत्य के कारण इनकी प्रना
इन पर असंतुष्ट होगी। लेख नं० २५१५ से सं० १६८३ में इनका राज्य काल मिलता है। ३. मनोहरदास-कल्याणदात के पुत्र थे। लगभग सं० १६८४ में गद्दी पर बैठे होंगे। लेख से सं.
१६८५ में इनका राज्यकाल मिलता है। इनके स्वर्गवास का समय मिला नहीं। ३१ रामचन्द्र—मनोहरदास के पुत्र थे। उद्धत स्वभाव होने के कारण सं० १७०७ (ई. १६५१ ) में राज्य
च्युत हुए थे। लेख में इनका उल्लेख नहीं मिला। ३२ सबल सिंह-मालदेव के प्रपौत्र थे। रामचन्द्र के स्थान पर इनको राज्याधिकार मिला। इनके समय से
जस रमेर का पौकरण परगना राज्य से अलग हुआ। दिलो की बादशाही दरबार में जैसलमेर के
आप प्रथम सामंत हुए थे। राज्यकाल सं० १७०७-१७१७ ( ई० १६५१.---१६६१ ) । ३३ अमर सिंह-सबल सिंह के २ य पुत्र थे । इनके समय में राज्य का विस्तार हुआ था। अमरसागर
नामक प्रसिद्ध तालाब और पार्श्व.स्थत सुरम्य उद्यान इनकी कीर्ति भद्यावधि वर्तमान है। शिलालेखों
में इनका नाम नहीं है। राज्यकाल सं० १७१७-१७५८ ( ० १६६१-१७०२ ) । १४ जसवंत सिंह-अमर सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। राज्यकाल सं० १७९६-१७६४ ( ई० १७०३-९७८) । १, बुध सिंह -जसवंत सिंह के पौत्र थे । इनके पिना के राज्यपद् में बैठने के पहले हो देहान्त होने के
कारण अल्प वयस में ही इनको गद्दी मिली थी। इनके राज्यकाल का सं. १७६६ शिलालेख
नं० २५५०६ में मिला है। राज्यकाल सं० १७६४ - १७६६ । ई० १७०८-.-१७१३) । ३ तेज सिंर जसवंत सिंह के पुत्र थे। ये अन्याय से सिंहासन पर बैठे और घराबर घोर अशांति चलती
रही। थोड़े ही काल पश्चात् इनकी मृत्यु हुई ! र सर्ग सिंह...तेज सिंह के पुत्र थे। पिता की तरह ये भी गद्दी पर बैठने के अल्प समय के पश्चात्
राज्यभ्रष्ट हुये । इनके पिता के तथा इनके समय के संवत् मिले नहीं।
___* टाड साहेब अपने इतिहास में इनको जगत सिंह के द्वितीय पुत्र लिखे हैं परन्तु प्रथम पुत्र होना संभव है
और इनकी पसंत रोग से मृत्यु होने के पश्चात् इनके पितय, तेज सिंह का गद्दी पर बैठना लिखते है। न्यासजो लिखते हैं कि ये तेज सिंह द्वारा विष प्रयोग से मारे गये थे।
"Aho Shrut Gyanam"