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२.
स्मणजो-केहर शो के पुत्र थे और सं० १४५१ में गहो पर है। इनके शासनकाल में राज्य को उन्नति
होती रही। दुगे के श्री चिंतामणि पाश्चनाधनो का मंदिर इन्हीं के समय में बना था। प्रशस्तियों में सविशेष उल्लेख है। मृत्यु सं० १४६३ (०.१५३६) ।
२१ बरसी (षयर सिंह )-लक्ष्मणजी के पुत्र थे। इनके समय में बहुत से मंदिरों की प्रतिष्ठा हुई थी। बारह
वर्ष राज्य भोग करने के पश्चात् इनका स्वर्गवास .हुआ ! सं० १५६३५-१५०५ (१० १४३६--- १४४८) 1..
२२ वाचकदेव (चाविगदेव, चाबजी) (२य)-बरसीजो के ज्येष्ठ पुत्र थे । सं० १५०५ (ई. १४४८ ) में
सिंहासन पर बैठे और लेन नं० २१४४ से भी यह संवत् मिलता है। किले पर के श्रोसंभवनाथजी के मंदिर को 'तपपष्टिका' को प्रतिष्ठा इन्हीं के समय में हुई थी। ये सोडाजाति के राजपूतों द्वारा षड्यंत्र से मारे गये थे। लेखों से इनका सं० १.१८ (ई. १४६१ ) तक राज्यकाल मिलता है।
२३ देवीदास ( देवकर्ण )--वाचकदेव के पुत्र थे। इनके राजत्वकाल में नाना प्रकार आभ्यंतरिक विप्लव रहने
के कारण उस समय का इतिहास ठीक नहीं मिलता है। व्यासजो संवत् १५१३ में इनका राज्य. तिलक लिखते है, लेकिन लेखों से संवत् १५१८ तक चाचिगदेव का शासनकाल मिलता है । इनके संवत् १५३६ के कई लेख मिले हैं। इनका स्वर्गवास सं० १५५३ (६० १४६६ ) में हुआ था ऐसा व्यासजी के इतिहास में है।
२५ अंत सिंह (जयत सिंह) (२ य }-देवकर्ण के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनके समय में राज्य पर बीकानेर राज्य का
आक्रमण हुआ था। दुर्ग पर के श्रीशांतिनाथजी और थ्रोअष्टापदजी के प्रशस्ति से इनका सं० १५८१ और १५८३ स्पष्ट है। इनके खावास का संवत् देखने में नहीं आया । संभव है कि सं० १५८३ और १५८५ के बीच में इनका देहान्त हुआ होगा।
• व्यासजी सं० १६ में इनका राज्याभिषेक लिखते हैं । शिलालेख (नं० २११४) से इनके राज्यप्राप्ति का संवत् १we मिलता है और श्रोसंभवनाथजी के मंदिर को प्रशस्ति (नं०. २१३६ ) से तथा दुर्ग के कुओं पर के स्तंस के लेख नं० २५१ से संवत् १४६४ में इनका राज्यकाल स्पष्ट है। इन सत्रों के अतिरिक्त दुर्गस्थित भोलस्मोकान्तजी के प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिष्ठा मी सं० १४६४ में महारत्रल परसोजी ने कराई थी, यह उक्त मंदिर की शास्ति में लिखा है। यहां भी आपने सं० १४६४ में लक्ष्मणजी द्वारा श्रीलक्ष्मीकान्तजी के मंदिर की प्रतिष्ठा होना किस कारण लिखा, समझ में नहीं आया।
"Aho Shrut Gyanam"