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[ १५ ] (३) तराम जेठमव नाथमच सागरमल उमेदमवादि सपरिकरः स्वश्रेयो संवत् १९३२
वैशाख सुदि १५ (४) सोमे ॥
दादाजी के चरण पर
[2542] . सं० १९१७ रा वर्षे शाके १७०३ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माधवमासे कृष्णपते नवमी ए तिथौ शनिवारे महाराजाधिराज महारावसजी श्रीरणजीतसिंघजी विजयराज्ये श्रीजेसलमेरुषा हत्खरतरजहारकगछेन श्रीसंघेन श्रीश्रमरसागर मध्ये श्रीजिनकुशखसूरि सद्गुरूणां शासा स्थुग पायुका कारापितं श्रीजिनमहेन्मसूरिषद्दालंकार श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। धर्मराज्ये श्री जिनजऽसूरि शाखायां पं०। पद्महंस मुनि तत् शिष्य पं० १ साहिबचंऊ मुनि प्रतिष्ठितं उपदेशात् पं अगरचंदमुचि नि । जूयात् ॥
* यह छतरी बगोचे में है। चरण श्वेत और परिकर पीले पाषाण का है। मंदिर के दो मंजले में श्रीजिनमहेंद्रपूरिजी के श्याम पाषाण के और श्रीजिनहर्षसूरिजा के श्वेत पाषाण के करण विराजमान है और घोड़े पर बैठे हुए जीवनरामजी की श्वेत पापण की मूर्ति है, जिसमें भी सं० १९२८ खुदा हुआ है।
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"Aho Shrut Gyanam"