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(१) श्रीनिवासं सुरश्रेणि सेव्य क्रमं (३) माधवेशादिदेवाधिकोपक्रमं
लोद्रवा
श्रीपार्श्वनाथजी का मंदिर ।
शतदलपद्म यंत्र | [ प्रशस्ति ]
[ 2543] *
।
( मध्य भागमें )
(२) वामकामाग्निसंतापनीरोपमं । (४) तत्रसंज्ञान विज्ञानजव्याश्रमं ॥ १ ॥
आजकल लोद्रवा एक सामान्य स्थिति का ग्राम मात्र रह गया है परन्तु प्राचीन काल में "लोद्रपुर” नामक एक बड़ा समृद्धिशाली पत्तन था। यह स्थान जैसलमेर से पछि लगभग पांच कोल की दूरी पर है और यहां के श्रोपार्श्वनाथजी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। चारों कोने पर चार छोटे मंदिर हैं और मध्य में यह मूल-मंदिर बना हुआ है। ये सब मंदिर एक ही हाते में परकोट से घिरे हुए हैं। फाटकके बांबे तरफ क्षेत्रपाल और भावायों के कई एक चरण भो प्रतिष्ठित हैं।
* यह प्रशस्ति का शिलालेख मंदिर के गर्भद्वार के वांये तरफ दीवार पर लगा हुआ है। इसकी लंबाई २२ इञ्च और चौड़ाई
१७ रश्च है
यह शतदलपद्मयंत्र की प्रशस्ति अपूर्व है। अद्यावधि मेरे देखने में जितने प्रशस्ति शिलालेखादि आये हैं उन में अलंकार शास्त्र का ऐसा नमूना नहीं मिला है। पाठकों को मित्रसे अच्छी तरह ज्ञात होजायगा कि यह शतदलपद्मयन्त्र जो बीचमें खुदा
"Aho Shrut Gyanam"