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________________ (१५) मूर्तियों पर। [2068] ॥ सं० । १५२१ माह सुदि गुरु । श्री चंजिन बिंबं कारितं । श्री बृहत्खरतरगबीय जा श्री जिनहंस सूरिजिः प्रति . . . . . .। [2067] ॥ सं० १९२१ माद ॥ सु।७।। श्री सुमतिजिन विवं कारितं । श्री वृहत्खरतरगहीय जय श्री जिनहंस सूरिनिः प्रति . . . . . . । धातु को पंचतीर्थी पर। [2068] ॥ सं० १५०५ वर्षे पोस सुदि १५ आ० विणवट गोत्र पा स्तदा जाट सूदख दे पु। सहसा ना सुदड़ दे पितृमात पु० श्री चंचप्रमोबिंब कारित प्रा श्री धर्मघोष गळे पूर्ण सूरि पट्टे श्री महेंद्र सूरिभिः ॥ श्री॥ ताम्रपट्ट पर। [ 2060] ॥ संवत् १ए० रा शाके १७३५ रा ज्येष्ठ मासे कृष्ण पदे तिथो त्रयोदश्यायां चंडवासरे ॥ जट्टारक श्री जिनफत्तेऽ सूरि प्रतिष्टितं श्री मास शूलामध्ये ।। चंऽप्रचस्वामी का मंदिर-साहूकार पेठ । शिलालेख । - { 2070] (२) ॥ नमः श्री वीतरागाय ॥ (३ ) ॥ श्लोकः ॥ आसीत्सूरिपदप्रतिधितरणेः श्री हेमसूरिप्रनुस्तत्पी प्रतिवादिवृन्द "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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