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________________ ( २४३.) (४) रोषामनुक्रमे श्री जिनचंड सूरि पट्टकमलमार्तडमंडलिः श्री मशिनसागर सूरिनिः ॥ शिवमस्तु ॥ (५) वरसंग देवराज पुन्याः ॥ नागदा-मेवाड़। श्री शांतिनाथ जी का मंदिर। मूलनायक की श्वेत पषाण की विशाल मूर्ति की चरण चौकी पर । [1058 ] - (१) संवत् १४९४ वर्षे माघ सुदि ११ गुरुवारे श्री (२) मेदपाट देशे श्री देवकुष्ठ पाटक पुरवरे नरेश्वर श्री मोकम पुत्र (३) श्री कुंजकर्ण जुपति विजयराज्ये श्री उससे श्री नवक्षक शाष मंडन सा० समी (४) धर सुत सा साधू तत्पुत्र साधु श्री रामदेव तद्भार्या प्रथमा मेसा दे द्वितीया मादण दे । मेला दे कुक्षि संजत (५) साम् श्री सहणपाल । माम्हण दे कुक्षिसरोजहंसोपम श्री जिनधर्मकर्पूरवातसय धानुक सारा सारंग तदंगना हीमा के सलमा दे १६) प्रमुख परिवार सहितेन सा सारंगेन निजजापार्जित पक्षी सफली करणार्थ निरुपममद्भुतं श्रीमहत् श्री शांति जिनवर बिंबं सपरिकर कारितं (७) प्रतिष्ठितं श्री वर्धमानस्वाम्यन्वये श्री मरखरतर गछे श्री जिनराज सूरि पट्टे श्री जिनवर्धन सूरि त (स्त) पट्टे श्री जिनचंड सूरि त (स्त) पहपूर्वाचलचूलिका स* यह लेख “ भावनगर इन्साकस्सन्स" पृ० ११२-२३-में और " देवकुलपाटक" पृ० १६ नं० १८ में प्रकाशित हुवा है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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