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________________ ( १५५ ) चंद्रावती। यह तीर्थ बनारस से 3 कोस पर गंगा के किनारे अवस्थित है। श्रावें तीर्थंकर चंद्रप्रतस्वामी का इसी चंद्रावती नगरी में च्यवन, जन्म, दीदा और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक हुए हैं। पाषाण के चरण पर। [ 1681] श्री वाराणसी नगरी स्थित समस्त श्री संघेन श्री चंदावत्यां नग- श्री चंद्रग्रनु सुनाम म जगनाथानां चरण न्यासः समस्त सर्व सूरितिः प्रतिष्ठितं । संवत् १७६० मिति आषाड़ मासे शुक्ल पक्ष ११ वार शुक्रवार शुनं ।। पाषाण की यह मूर्ति पर। [1682 ] * संवत् १९१३ फाल्गुण शुक्ल सप्तम्यां विजय यद मूर्ति प्रतिष्ठितं । नद्दारक । युगप्रधान श्री जिनमहेंड सूरिनिः कारिता काशीस्य श्री श्वेताम्बर श्री संघेन । [1633] सं० । १७ माघ शुदि ५ सोमे श्री जिनकुशल सूरि चरण कमलं कारितं श्री. मालान्वये फोफलिया गोत्रीय वपतमस पुत्र दिलसुखरायेण प्र। वृन। खरतर ग। श्रीजिनचंड सूरिनि: श्री जिनादाय सूरि पदस्थैः । शिलालेख । [1684] श्री दादाजी महाराज के मंदिरजी का जीरणनछार । लदमीचंद राखेचा की लड़की चोटी वित्रि की तरफ से बनाया। जादो सुदि । शुक्रवार सम्बत् १५५५ । * ज्वाला देवी की मूर्ति पर भी इसी प्रकार का लेख है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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