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________________ ( १५४) [1676] सं० १४ वर्षे फागुण वदि ५ गुरौ श्रीमाल ज्ञातीय श्री एलहर गोत्रे शाप दया. संताने सा० पूनात्मज म मिच्चाकेन जात डोडाप्रभृतिपरिवारयुतेन श्री वासुपूज्य विवं कारितं श्री बृहद् गच्छे श्री मुनीश्वर सूरि पट्टे प्रा रत्नप्रन सूरिनिः । धातु की मूर्ति पर। [1677] सं० १६६४ वर्षे राय पालक मु० पा प्र० तप ........। पट्ट पर। [16787 सं १६७२ जान सुदि ११ श्री चंप्रत जिन विंबं ॥ बीरदास प्रणमति । ३. ॥ पाषाण के चरणों पर। [16701 सं० २७ फागुण शुदि ५ वार शनि अयोध्या नगरे बंगलासति वास्मस नखल गोत्रीय जोरामल तत्पुत्र बपतावरसिंघ तत्पुत्र कनईवालालादिसहिनन श्री जिनकुशल सूरि पादुका कारितं । प्रतिष्ठितं वृहत् जहारक खस्तर गर्छीय श्री जिनचंड मुरिन्तिः कारक पूजकानां नूयसि वृहितसं नूयात् ॥ [1680] संद ? [म । फा। सु० ४ श्री जिन कुशल पादौ । प्र | श्री जिनर्च सूर नः । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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