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________________ अभिप्रायो 'अध्यात्मतत्त्वालोक' पर विद्वदृष्टि यह ( ' अध्यात्मतचालोक' ) संस्कृत पद्य में है। माठ प्रकरणों में विभक्त है । उसकी रचना न्यायतीर्थ- न्यायविश्वापद मुनि न्यायविजयने की है। xxx चित्र देखने से तो इस ग्रन्थ के कर्ता मुनिमहाराज बहुत वयस्क नहीं जान पडते । पर आपकी कृति तो जराजीणों को भी मात करनेवाली है। उससे तो ज्ञात होता है कि आप जैनागम के पारगामी पंडित हैं। आपने अपने ग्रन्थ के प्रकरणों में अध्यात्मसम्बन्धिनी बडी ही गहन बातें कही हैं । पर कही हैं बड़ी सरल, सरस और भावमयी श्लोकावली में। आप अध्यात्म-तत्व के शाता ही नहीं, सुकत्रि भी हैं। हम तो आपके ग्रन्थ के अनेकांश पढ कर मुग्ध हो गए। कितने ही अंशों का बार बार पाठ किया , पर फिर भी वृप्ति न हुई। -हिन्दी मासिकपत्रिका " सरस्वती" पं. श्री महावीरप्रसादजी द्विवेदी-सम्पादित । [ सप्टेम्बर, १९२० ] क तर्कशानं क च योमनिष्ठा कभिक्षुता सस्कवितादतिः क ? जयत्यहो ! न्यायविशारदोऽयं भिक्षुस्स योगी कवि-तार्किकोऽपि शिष्यः श्रीविजयधर्मसूरेन्यविशारदः । परिम्राट् कविताभर्ता मुक्तिकन्यारतस्सदा Ano! Shrutgyanam
SR No.009674
Book TitleSubodhvani Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year1949
Total Pages614
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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